जयपुर: प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन जयपुर में हुआ। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देश भर के वामपंथी लेखक, बुद्धिजीवी , साहित्यकार, कवि, कथाकार इकट्ठा हुए। राजस्थान के जयपुर शहर में प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन लगभग 37 वर्षों के बाद हुआ।  कार्यक्रम के पहले रवींद्र मंच से लेखकों का जुलूस 'जवाहर लाल नेहरू' की  मूर्ति  तक गया । उपस्थित सभी लेखकों ने नेहरू की मूर्ति  पर पुष्पांजलि  दी। । यहां से सभी जुलूस की शक्ल में सभा स्थल पर पहुंचे। जुलूस का नेतृत्व प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन, भाषाशास्त्री गणेश एन देवी, खगेन्द्र ठाकुर, रामशरण जोशी, नरेश सक्सेना, विभूति नारायण राय, ललित सुरजन, सुखदेव सिंह सिरसा आदि कर रहे थे। लेखकों की एकता जिंदाबाद, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले बंद करो, जैसे नारे पूरे रास्ते में लगते रहे। 

उद्घाटन सत्र में  सबसे पहले नामवर नगर के  ' कैफ़ी आज़मी मंच ' पर  कैफ़ी आज़मी की नज़्म ' राम को दूसरा वनवास ' मिला का पाठ किया गया। स्वागत वक्तव्य में स्वागत समिति के अध्यक्ष  जस्टिस विनोद कुमार दवे के संदेश का पाठ किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत राजस्थान प्रलेस के अध्यक्ष ऋतुराज ने अपने संबोधन में कहा " हिंदुस्तान के 26 प्रांतों के  लगभग  500 लेखक इस सम्मेलन में  आये हैं। आज लेखक होना एक कठिन संघर्ष है।तंत्र के घात-प्रतिघात झेलना हर लेखक का जरुरी कार्यभार है। सभी वामपन्थी लेखकों को एकजुट होना होगा। 

प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष  पुन्नीवलन  ने अपने सम्बोधन में कहा " आज जिसे हम भारत समझते हैं उसकी समझ स्वाधीनता के बाद अस्त्तित्व में आई है। जो सेक्युलर, डेमोक्रेटिक  विचार है आज उसके साथ साथ एक और विचार है जो भारत की पहचान हिन्दू भारत के रूप में करना चाहते हैं।"

प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा "  37 साल पहले मैं एक कार्यकर्ता की तरह था। तब  अमृतराय ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा था किसी लेखक का मूल्यांकन रचनाधर्मिता के आधार पर किया जाना चाहिए। तब अमृत राय ने मार्क्सवाद की संकीर्णतावाद की ओर इशारा किया था। मिलकर चलने की बात रस्मी न हो। इसलिए आपके सामने जयपुर घोषणा पत्र है।"