आज हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की जयंती है. 21 मई, 1931 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्मे शरद जोशी ने हिंदी व्यंग्य को अखबारों में वह जगह दिलाई, जिसकी उसे दरकार थी. अपने लेखकीय प्रेम के चलते उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग की नौकरी छोड़ दी और इन्दौर में रहते हुए समाचारपत्रों और रेडियो के लिए लिखना शुरू किया. यहीं से वह व्यंग्य, कहानी व पटकथा लेखन से हिंदी साहित्य जगत पर छा गए. शरद जोशी ने अपने वक्त की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को अत्यंत पैनी निगाह से देखा और बड़ी साफगोई के साथ सटीक शब्दों में व्यक्त किया. इनकी कहानियों पर आधारित 'लापतागंज' धारावाहिक काफी चर्चित रहा. उनकी चर्चित पुस्तकों में व्यंग्य संग्रह परिक्रमा, किसी बहाने, तिलिस्म, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, दूसरी सतह, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यथासंभव, जीप पर सवार इल्लियाँ शामिल है.
देश की लगभग सभी बड़ी पत्रपत्रिकाओं में उनके लेख और व्यंग्य को जगह मिली. शरद जोशी ने अपने व्यंग्य की तीखी धार से तत्कालीन सियासी जगत को झकझोर कर तो रखा ही फिल्म जगत को भी प्रभावित किया. उन्होंने क्षितिज, छोटी-सी बात, सांच को आंच नहीं, गोधूलि, उत्सव फिल्म के संवाद लिखे, तो ये जो है जिन्दगी, विक्रम बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, देवी जी, प्याले में तूफान, दाने अनार के, ये दुनिया गजब की जैसे धारावाहिकों का लेखन भी किया. 1990 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. मध्यप्रदेश सरकार ने उनके नाम पर शरद जोशी सम्मान आरंभ किया. 5 सितम्बर, 1991 को मुंबई में उनका निधन हुआ, पर जोशी अपने तीखे व्यंग्य के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे.