नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने लंदन में हिंदी और हिंदी साहित्य का परचम फहराने वाले साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा को प्रवासी मंच कार्यक्रम में बुलाया और गीतकार शैलेंद्र पर बात की. कथाकार तेजेंद्र शर्मा का कहना था कि बचपन से किशोरावस्था के दौरान शैलेंद्र के गीत सुन कर अलग-सी हलचल होने लगती थी. सबके गाने सुनता था, मगर शैलेंद्र के गीत भीतर से डिस्टर्ब करते थे. बड़ा हुआ तो उन्हें पढ़ना शुरू किया. मैं गीतों को सुनता तो धुनों को भी सुनता था. बाद में गीतों की गहराई में जाना शुरू किया, तो समझ में आया कि अगर मैं किसी व्यक्ति को संपूर्ण कवि कह सकता हूं, जिसने कविता को कमर्शियल सिनेमा में इस तरह इस्तेमाल किया कि हम उस कविता को गीत की तरह गुनगुनाते हैं, तो उसमें शैलेंद्र का नाम सबसे ऊपर है. उन्होंने इस बात पर अचरज जताया कि उर्दू साहित्य अपने गीतकारों को शायर के रूप में स्वीकार करता है, पर हिंदी के प्रधानाचार्यों ने बाड़ लगा दिया कि जिसने सिनेमा को छुआ, वो अछूत हुआ.
शैलेंद्र को हिंदी जगत का सबसे गहरा कवि-गीतकार बताते हुए तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि कोई उत्सव हो तो उनके गीत ही याद आते हैं. शैलेंद्र ने अपने लेखन पर अपनी विचारधारा को कभी हावी नहीं होने देता. वह जीवन के कवि हैं, वह आम आदमी की भावनाओं के कवि हैं. तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि वैसे तो साहित्य अकादमी ने उन्हें कहानी पाठ के लिए बुलाया था, पर दिल्ली के कई मित्र जो हंसराज कॉलेज में शैलेंद्र पर हुई बातचीत को सुन चुके थे, चहते थे कि 'कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं' वाले शैलेंद्र पर बात हो. और यही हुआ. साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव की मौजूदगी में इस कार्यक्रम में कई वरिष्ठ कथाकार, कवि व पत्रकार शामिल हुए, जिनमें दिविक रमेश, सुरेश ऋतुपर्णा, आलोक मेहता, अजीत राय, प्रेम जनमेजय, जय वर्मा, ब्रजेंद्र त्रिपाठी, अजय नावरिया, रूपा सिंह, किरण सूद, संगीता कुमारी, कौशल पंवार, पंकज प्रथम, कमलेश भट्ट कमल, ओम सप्रा, धर्मवीर मोहला, डॉ. सुनीता सिंह आदि शामिल हुए. बातचीत के बाद सवाल जवाब का भी एक जीवंत सेशन रहा. संचालन किया साहित्य अकादमी के कुमार अनुपम ने.