एम्सटर्डमः नीदरलैंड्स स्थित भारतीय दूतावास के गांधी सांस्कृतिक केंद्र की पहल पर 'हिंदी की वैश्विकता' के परिप्रेक्ष्य आयोजित संवाद के दौरान काव्‍य-गोष्‍ठी की अपनी ही रंगत थी. इस अवसर पर वरिष्ठ कवि डॉ रामदरश मिश्र ने दो कविताएं सुनाईं, जिनमें से एक गजल का शेर यों था, 'जब पराये देश में है तड़पती बीमार नींद/ बैठ सिरहाने मेरा सिर मां सा सहलाता है घर.' उन्‍होंने अपनी चर्चित गजल 'जहां आप पहुंचे छलांगे लगा कर/ वहां मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे भी सुना कर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया. नीदरलैंड्स में ही निवासरत कवि-गजलगो सुशांत जैन ने लालफीताशाही की बखिया उधेड़ते ये अशआर सुनाए, 'झूठ और सच किधर था फाइल में, राज ये भी अमर था फाइल में/ एक घर भी नहीं यहां, वैसे एक पूरा नगर था फाइल में. कुछ वजन ही नहीं रखा, वरना दौड़ने का हुनर था फाइल में.' नीदरलैंड्स की ही मनोचिकित्सक कवयित्री आस्‍था दीक्षित अरुणिमा ने अपनी तीन चुनिंदा कविताएं सुनाईं, जिनमें से एक के बोल थे, 'माधव तुमने भेजे जो बादल, आए हैं वे मेरे अंगना/ गीत तुम्‍हारा लेकर नाचे हैं ये सारे बदरा/  तुमने भेजी जो धूप सुनहरी, रोशन करती मेरी बिंदिया/ माधव ये सब रंग तुम्‍हारे हैं.' नीदरलैंड्स में एक सॉफ्टवेयर कंपनी के निदेशक विश्वास दुबे की कविता के बोल थे, 'ये कैसा है समाज, जहां नायक नकारे जाते हैं/ सामने हों तो तिरस्‍कार, बाद में पुतले संवारे जाते हैं.'

सूरीनाम हिंदी परिषद के संस्‍थापक, आर्य समाज नीदरलैंड्स के अध्यक्ष और दर्जनों भाषाओं के जानकार सूर्यप्रसाद वीरे 'शूरवीर' ने हिंदी को बचाने के लिए बोलियों को बचाने की जरूरत बताई तथा कहा कि हमारी बोलियां बचेंगी तो हिंदी बचेगी. बांग्‍लादेश के एक प्रतिष्‍ठित इंटरनेशनल स्‍कूल में प्राचार्य ज्ञानेश त्रिपाठी ने कुछ लोकप्रिय गजलें सुनाईं, कुछ अशआर यों थे, 'बड़ी तबीयत से खींचा है गया इस घर का नक्‍शा/ यहां हर घर के पीछे एक कब्रिस्‍तान होता है.' दूसरी गजल का एक शेर था, 'बजाय इसके कि गंगा में नहाया जाए/ घर के कचरे को न गंगा में बहाया जाए.' चीन के एक प्रतिष्‍ठित क्‍वांग्‍तोंग विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि आज चीन के 17 विवि में हिंदी की पढ़ाई हो रही है तथा 15 विश्‍वविद्यालयों में भारत अध्‍ययन केंद्र एवं सौ से ज्‍यादा बौद्ध अध्‍ययन केंद्र हैं. चीनियों की हिंदी भाषा सीखने की ओर रुचि बढ़ रही है. भारतीय दूतावास, गांधी केंद्र के प्रभारी निदेशक शिवमोहन सिंह 'शुभ्र' ने सारस पक्षी को लेकर को दोहे सुनाए, उनमें कुछ यों थे, 'सारस बैठा खेत में लगे धीर गंभीर, बिछुड़ा साथी याद कर नयन भरे हैं नीर./ सारस बैठा खेत में करता सोच विचार, मानव तूने आज क्‍यूं बदला है व्‍यवहार.' लंदन के जाने माने कथाकार  तेजेंन्‍द्र शर्मा ने हिंदी की राह में रोड़े अटकाने वाली सचाइयां भी बयान कीं, तो  नीदरलैंड्स की सुपरिचित कवयित्री डॉ पुष्‍पिता अवस्‍थी ने इस अवसर पर अपनी दो छोटी-छोटी कविताएं सुना कर मन मोह लिया. संचालन हिंदी के गीतकार डॉ ओम निश्चल ने किया.