वाराणसी: साहित्य के शिखर पुरुष मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन पर सच की दस्तक के तत्वाधान में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में भाग लेते हुए प्रसिद्ध रंगकर्मी, साहित्यकार कृष्णकांत श्रीवास्तव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के लिए उनकी पुस्तकों की पाठशाला में पढ़ना जरूरी है. उनके मानसरोवर में डूब कर यह समझना जरूरी है कि यथार्थ क्या होता है, त्रासदी क्या होती है? उन्होंने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी लिखा वह कल्पना नहीं थी बल्कि जो उन्होंने देखा उसी को लिखा. सामाजिक बुराइयों को मुंशी प्रेमचंद ने पहले ही भांप लिया था और उसी पर अपनी लेखनी चलाई थी. उन्होंने दशकों पहले अपनी लेखनी के माध्यम से सबके सामने जो लाने का प्रयास किया था निश्चित तौर पर आज सच साबित हो रहा है. संगोष्ठी में भाग लेते हुए साहित्यकार इंद्र भूषण कोचगवे ने कहा कि जिस समय गुलाम भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक विसंगतिमय अस्त-व्यस्त परिदृश्य का मानचित्र अंग्रेजी साम्राज्यवादी शोषण नीतियों से अत्यधिक दयनीय हो बिखर चुका था, उसी समय उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में देश प्रेम नामक छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसमें पांच छोटी कहानियाँ संग्रहित थीं. देश प्रेम की भावना इन कहानियों में सांस ले रही थी और इसके लेखक थे प्रेमचंद. प्रेमचंद जी ने सर्वप्रथम उर्दू में, फिर हिन्दी में लेखन कार्य प्रारम्भ किया. उपन्यास सम्राट के नाम से तो प्रेमचंद जी सुप्रसिद्ध हुए ही, कहानीकार होने के कारण वह और प्रसिद्धि की ओर बढ़ते गए.
संगोष्ठी में भाग लेते हुए लेखक पत्रकार ब्रजेश कुमार ने कहा कि साहित्य के शिखर पुरुष मुंशी प्रेमचंद की कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं. दशकों पहले उन्होंने जिन मुद्दों पर कलम चलाई थी उसकी अनुभूति आज की पीढ़ी कर रही है. प्रेमचंद  के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सोज-ए-वतन लिखा गया. इस कहानी संग्रह का जब प्रकाशन हुआ तो यह बात हमीरपुर के कलेक्टर तक पहुंची व धनपत राय जिन्होंने लेखकीय नाम प्रेमचंद अपनाया, इसी मामले में पेशी पर बुलाए गए. कलेक्टर ने कहा कि भाग्य को सराहो कि अंग्रेजी अमलदारी में हो. मुगल राज होता तो दोनों हाथ काट दिए जाते. यह एक घटना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि स्वतंत्रता आंदोलन में उपन्यासकार प्रेमचंद की लेखनी कैसी रही होगी. निश्चित तौर पर उनकी जयंती से अलग भी उन्हें शत-शत नमन. इस अवसर पर साहित्यकार आकांक्षा सक्सेना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी बातों को रखा. उन्होंने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप जैसे शब्द आज के दौर में सामने आए हैं. प्रेमचंद तो उस जमाने के थे जब गौना के बगैर पति पत्नी मिल भी नहीं सकते थे. उन्होंने उस दौर में मिस पद्मा जैसी कहानी लिखी जिसमें आज के दौर की झलक है. इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि मुंशी जी अपने समय से कितना आगे थे. इस संगोष्ठी में मनोज उपाध्याय ने भी प्रेमचंद के विषय में अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि मुंशी जी के नाटक, उपन्यास, कहानी सच को दिखाती है.