पटना: " जन नाट्य के अंतर्गत कला के सभी स्वरूपों को ग्रहण करना चाहिए। हमें नाटक के व्याकरण की भाषा समझने की जरूरत है। नाटक के व्याकरण अलग हैं और सिनेमा के व्याकरण अलग, जिसकी पहचान करना मुश्किल होता है। जन नाट्य पर चर्चा करते हुए निर्देशक की बात करें तो निर्देशक एक अच्छा कहानी कहने वाला होता है। ऐसी स्थिति में एक निर्देशक को भाषा सीखने की जरूरत होती है।"  ‘उक्त बातें इप्टा के राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह के मौके पर चौथे दिन अमृतलाल नागर- एसएम घोषाल की स्मृति में आयोजित इप्टा संवाद कार्यक्रम के तहत जन नाट्य और निर्देशनविषय पर चर्चा करते हुए चर्चित नाट्य निर्देशक सह इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एमएस सथ्यू ने कहीं।

उन्होंने कहा कि हमें माइथोलॉजीकल कथा या ऐतिहासिक कथा से कभी परहेज नहीं करना चाहिए। अभी अभी एक नाटक लिखा गया है जो महाभारत की कथा पर आधारित है श्मशान कुरुक्षेत्र। यह नाटक युद्ध के खिलाफ शांति के लिए है। माइथोलॉजिकल  कथा का बहुत ही सुंदर उपयोग किया गया है।इस संवाद को आगे बढ़ाते हुए चर्चित रंग निर्देशक परवेज अख्तर ने कहा " नाटक के कई स्वरूप है जो लोकनाट्य के रूप में कई स्वरूपों में विद्यमान हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतेंदु ने जिस नाट्य परंपरा की शुरुआत की वह अवधारणा जन्नत की अवधारणा हो सकती है।

इस संदर्भ में संवाद के दौरान कलाकारों ने सवाल रखा कि जन नाट्य के मुख्य तत्व क्या हो सकते हैं और जन नाट्य की परंपरा को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है? इस सवाल पर राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने कहाजन नाट्य एक पॉलिटिकल थिएटर है। एक ऐसा पॉलिटिकल थिएटर जो एक मास की बात करता है।संवाद का संचालन युवा नाट्य निर्देशक आसिफ अली ने किया।