भोपालः राज्य के जनजातीय संग्रहालय में साहित्य और संगीत का अद्भुत रस जारी है. तीन दिवसीय इस 'निर्गुण गानसमारोह में संगीत के सुरों में भक्तिरस की प्रबल धारा के चलते श्रोता निर्बाध रूप से बहता चला जाता है. भाव-अभाव से परे निराकार ईश्वर के समीप होने का अहसास कराता संगीतकबीर जयंती के मौके पर उनके दोहेपद की खूबसूरत प्रस्तुतियों से लबरेज था. मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् की आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी ने इस समारोह का आयोजन किया था. कार्यक्रम की शुरुआत अजय टिपाण्या ने अपने साथी कलाकारों के साथ 'कबीर गायनसे की. 'जेठ मास गर्मी को महीनो….से शुरू कर उन्होंने 'पीले अमीरस धारा गगन में झड़ी लगी…और 'रंग-रंग का फूल खिले रे…की प्रस्तुति दी. उनके कलाकारों ने 'ऐसी मारी प्रीत निभाओ जो…और 'सतगुरु है रंगरेज चुनर मेरी रंग डारी…भी श्रोताओं के समक्ष पेश किया. 'तन राम का मंदिर साधु…', 'मेहरम होवे सोई लख पावे…और 'घणा दिन सो लियो रे अब तो जाग मुसाफिर जाग…गीत सुनाए. 
इसके बाद अजय टिपाण्या ने 'कहां से आया कहां जाओगे…सुनाकर प्रस्तुति को विराम दिया. इस प्रस्तुति में अजय टिपाण्या का साथ वायलिन पर देवनारायण सारोलियाहारमोनियम पर धर्मेंद्र टिपाण्यामंजीरा पर मयंक टिपाण्या और ढोलक पर राकेश चौहान व विजय ने दिया. कबीर गायन के बाद मुंबई से आए आरती अंकलीकर टिकेकर ने अपने साथी कलाकारों के साथ 'उपशास्त्रीय गायनप्रस्तुत किया. गायन की शुरुआत करते हुए आरती ने भजन 'गुरु बिना कौन बतावे बात…की प्रस्तुति दी. इसके बाद 'घट-घट में पंछी बोलता…और 'तीरथ कौन करे…भजन प्रस्तुत कर उन्होंने सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. आरती अंकलीकर टिकेकर ने अपने साथी कलाकरों के साथ 'चादर हो गई बहुत पुरानी…और 'मन लागो यार फकीरी में…भजन सुनाकर अपनी गायन प्रस्तुति को विराम दिया. आरती के साथ हारमोनियम पर विवेकतबले पर रामेन्द्र सोलंकी ने और तानपुरे पर सरगम ने सहयोग किया. निर्गुण सगुण की उपासना का यह राग लंबे समय तक लोगों के मन पर छाया रहेगा.