मुरादाबादः नगर के नाम पर स्थानीय साहित्य प्रेमियों द्वारा संचालित मुरादाबाद साहित्यिक संस्था द्वारा जारी साप्ताहिक बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन कोरोना काल में भी जारी रहा. अंतर बस इतना था कि साहित्यकार एक साथ इकट्ठा हुए बगैर अपनी रचनाओं को समूह के सोशल मीडिया मंच पर साझा किया. इस क्रम में इस बार की बाल साहित्य गोष्ठी में कई मार्मिक प्रस्तुतियां भी सामने आईं. जिन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से प्रभाव छोड़ा उनमें जितेंद्र कमल आनंद, डॉ प्रीति हुंकार, अशोक विद्रोही, नृपेंद्र शर्मा सागर, राजीव प्रखर, श्रीकृष्ण शुक्ल, सीमा रानी, अभिषेक रुहेला और मंगलेश लता यादव प्रमुख हैं. जितेन्द्र कमल आनंद की रचना थी, “बच्चे तो बच्चे होते हैं, भोले-भाले दिल के सच्चे, धमा-चौकड़ी खूब मचाते, जब हंसते हैं लगते अच्छे…“, डॉ प्रीति हुंकार ने पढ़ा, “मेरे घर का छोटा उपवन अब हंसता है मुस्काता है. उसको खुशियां नई मिली हैं, यह बात मुझे बतलाता है….
बाल साहित्य में अच्छा लिख रहे अशोक विद्रोही की रचना की पंक्तियां कुछ यों थीं, “शोर मचाता गोलू आया, मेरे गुब्बारे भरवा दो, मेरी छोटी सी पिचकारी, ठीक नहीं है लंबी ला दो….नृपेंद्र शर्मा 'सागर' ने पढ़ा, “आओ बच्चों तुम्हे सिखाएं, खेल खेलने घर बैठे. खेल सकेंगे इसको मिल कर, चाहे दो हों चाहे छः…राजीव 'प्रखर' की चंद पंक्तियां, “सुन्दर स्वप्न सजाओ बच्चो, छुट्टी में इस बार. पुस्तक बन कर तुम्हें पुकारें, प्रेरक गाथाएं…श्रीकृष्ण शुक्ल ने पढ़ा, “छोटू पापा से ये बोला, कब तक घर में बंद रहूंगा. बैठे-बैठे ऊब गया हूं, कब जाकर के मैं खेलूंगा…सीमा रानी ने लिखा, “रंग बिरंगे लेकर गुब्बारे, जब फेरीवाला आता है. मन में उठे धमाचौकड़ी, जी भरकर ललचाता है.अभिषेक रुहेला ने कविता के माध्यम से 'हिन्दी व्याकरण' के 'कारक एवं चिह्नों' की जानकारी यों दी, “गोलू बोला सर जी हमको एक बात बतलाओ, होते क्या हैं 'कारक' जल्दी से हमको समझाओ…“, तो मंगलेश लता यादव की कविता की बानगी देखिए, “कब तक बंद रहेंगे घर में बोली नन्हीं मुनिया, मन करता है देखूं पापा बाहर की अब दुनिया.”