कोलकाता: स्थानीय कुमार सभा पुस्‍तकालय सभागार में हिंदी के अनन्‍य कवि गीतकार डॉ अरुणप्रकाश अवस्‍थी की स्‍मृति में हिंदी कविता और छंद विषयक व्‍याख्‍यानमाला का आयोजन हुआ. अध्‍यक्षता कोलकाता विश्‍वविद्यालय की हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ राजश्री शुक्‍ल ने किया. विशिष्‍ट अतिथि थे त्रिपुरा विश्‍वविद्यालय अगरतला के हिंदी अधिकारी  मुनीन्‍द्र मिश्र. मुख्‍य व्‍याख्‍यान समालोचक, गीतकार डॉ ओम निश्‍चल ने दिया. उन्‍होंने कहा कि सदियों से कविता छंद में लिखी जाती रही है. आज भी यह किसी न किसी रूप में कविता में व्‍याप्‍त है. कविता और संगीत का अविच्‍छिन्‍न रिश्‍ता देखते हुए ही एजरा पाउंड ने कहा था कविता जब संगीत से दूर निकल जाती है तो दम तोड़ देती है. उन्‍होंने कहा कि बिना छंद के कविता बिना रोशनी की लालटेन है. वह मानवमुक्‍ति के लिए अनिवार्य है.  डॉ ओम निश्‍चल ने हिंदी कविता की सदियों पुरानी काव्‍य परंपरा का जिक्र करते हुए कि हमारी समृद्ध काव्‍य परंपरा छंदों की दृष्‍टि से, संगीत की दृष्‍टि से व राग रागिनियों की दृष्‍टि से भी समृद्ध है. सूर, तुलसी, रहीम, रसखान, जायसी, अज्ञेय, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल, प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी से लेकर प्राय: सभी बडे कवि छंद सामर्थ्‍य की दृष्‍टि से महत्‍वपूर्ण हैं.
डॉ ओम निश्‍चल ने कहा कि जिन कवियों ने मुक्‍त छंद का बीड़ा उठाया वे छंद के भी बड़े कवियों में शुमार किए जाते हैं. रामदरश मिश्र, केदारनाथ सिंह, नरेश सक्‍सेना, कुंवर नारायण, गिरिजाकुमार माथुर व कैलाश वाजपेयी  के उत्‍तर जीवन के संग्रहों में भी गीत और छंद कविताएं शामिल हैं. बिना छंद के कविता वैसी ही है जैसे बिना रोशनी की लालटेन. इससे पूर्व डॉ निश्‍चल ने डॉ अरुण प्रकाश अवस्‍थी के कवि व्‍यक्‍तित्‍व का स्‍मरण किया. विशिष्‍ट अतिथि मुनींद्र मिश्र ने छंद की साधना को कविता की साधना से जोड़ते हुए कहा कि पहले बिना छंद सामर्थ्‍य के किसी का कवि होना संभव नहीं था, पर आज मुक्‍त छंद के दौर में सभी कवि बन गए हैं. डॉ राजश्री शुक्‍ल ने काव्‍य में छंद की अहमियत पर बल देते हुए कहा कि बिना छंद के कविता की कल्‍पना करना नामुमकिन है. सुपरिचित गायक ओम प्रकाश मिश्र ने अरुण प्रकाश अवस्‍थी एवं डॉ ओम निश्‍चल के गीत गाकर सुनाए. गिरिधर राय ने अवस्‍थी के संस्‍मरण सुनाए. कार्यक्रम का संचालन वंशीधर शर्मा ने किया. समाहार कुमारसभा पुस्‍तकालय के अध्‍यक्ष डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने किया. इस अवसर पर ऋषिकेश राय, रामेश्‍वर मिश्र अनुरोध, अनिल ओझा नीरद, राजेंद्र शेखर व्‍यास, सच्‍चिदानंद पारीक, पुरुषोत्‍तम तिवारी, दुर्गा व्‍यास, सत्‍यप्रकाश दुबे, कालीप्रसाद जायसवाल, चंद्रिकाप्रसाद पांडेय अनुरागी, आनंद पांडेय, जे चतुर्वेदी चिराग, लखबीर सिंह निर्दोष, सविता पोद्दार, जीवन सिंह, कुमार वीर सिंह मार्तण्‍ड, नंदलाल रोशन, महाबीरप्रसाद बजाज, अरुण प्रकाश मल्‍लावत, नंद कुमार लड्ढा, भागीरथ सारस्‍वत, सत्‍येंद्र सिंह अटल, योगेशराज उपाध्‍याय, मनोज कांकड़ा एवं अरुण सिंह जैसे साहित्यकार, पत्रकार व संस्‍कृतिकर्मी उपस्‍थित थे.