‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है. हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है'. अपने कालजयी उपन्यास 'चित्रलेखा' की इन पंक्तियों की मार्फत भारतीय धर्म, संस्कृति और दर्शन की गहराइयों को स्थापित करने वाले रचनाकार भगवती चरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त, 1903 को उत्तर प्रदेशके उन्नाव जिले में हुआ था. अद्भुत प्रतिभा के धनी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और अपने उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना और नाटक से साहित्य जगत में छा गए. वह एक प्रखर पत्रकार भी थे. एक कवि के रूप में भी उन्होंने प्रकृति और प्रेम पर बेहद उम्दा कविताएं लिखीं. उनकी एक कविता कुछ पंक्तियां हैं- धीरे धीरे मलय पवन-ओ मधुऋतु के मलय पवन! कहो तुम्हारे झोंको में है, किस विस्मृति का आलिंगन? सौरभ के पुलकित अधरों पर, किस मादकता का चुंबन?' 'मस्ती, आवेश एवं अहं'' उनकी कविताओं के केंद्र बिंदु थे, पर उन्होंने कविता पर कथा को तरजीह दी. एक बार उन्होंने कहा था, 'मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूं, कवि नहीं- आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है.'
वह केवल पंद्रह साल के थे, तभी से उनकी रचनाएं 'प्रताप' में प्रकाशित होने लगी थीं. बाद में उन्होंने इस पत्र का का संपादन भी किया था. उन्होंने मुंबई में फिल्म-कथालेखन, दैनिक 'नवजीवन' का संपादन और 'विचार' नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-संपादन करने के अलावा आकाशवाणी में भी काम किया था. उनकी चर्चित रचनाओं में, उपन्यास- 'पतन','चित्रलेखा', 'तीन वर्ष', 'टेढ़े-मेढ़े रास्ते','अपने खिलौने','भूले-बिसरे चित्र', 'वह फिर नहीं आई', 'सामर्थ्य और सीमा', 'थके पांव', 'रेखा', 'सीधी सच्ची बातें', 'युवराज चूंडा', 'सबहिं नचावत राम गोसाईं', 'प्रश्न और मरीचिका', 'धुप्पल', 'चाणक्य'; कहानी-संग्रह- 'मोर्चाबंदी'; कविता-संग्रह- 'मधुकण', 'प्रेम-संगीत', 'मानव'; नाटक- 'वसीहत', 'रुपया तुम्हें खा गया' और संस्मरण- 'अतीत के गर्भ से' शामिल है. साहित्य की उनकी सेवा के लिए साल 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा में प्रतिनिधित्व के अलावा उन्हें साहित्य अकादमी, साहित्य वाचस्पति और पदमभूषण से सम्मानित किया गया था. कहते हैं, पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित 'चित्रलेखा' की लोकप्रियता काल के पार है. 1934 में अपने पहले प्रकाशन से आज तक न जाने कितने लोगों ने 'चित्रलेखा' उपन्यास की खातिर हिंदी पढ़नी सीखी. कई बार इसके कथानक पर फिल्में भी बनीं. 5 अक्टूबर 1988 को इस कालजयी रचनाकार ने दुनिया को अलविदा कहा.
जागरण हिंदी की ओर से आधुनिक हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकारों में से एक भगवती चरण वर्मा को उनकी जयंती पर शत शत नमन!