नई दिल्लीः हिंदी प्रकाशन उद्योग में एक बड़ी घटना घटी है. राजकमल प्रकाशन समूह ने अपने साथ देश के चार बड़े प्रकाशनों का विलय कर लिया है. ये प्रकाशन हैं, साहित्य भवन प्राइवेट लिमिटेडपूर्वोदय प्रकाशन, सारांश प्रकाशन, रेमाधव प्रकाशन. इस विलय के बारे में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने बताया कि जब से मैंने होश संभाला, हिंदी प्रकाशकों को आपस में थोक खरीद की बातें करते ही पाया. थोक खरीद यानी सरकारी निर्भरता. मुझे लगता रहा है कि अच्छी, पाठक प्रिय पुस्तकें ज्यादा से ज्यादा हों, एक साथ हों, तभी शायद इससे मुक्ति संभव हो सकती है. अतीत के गर्त में जाती हजारों पुस्तकों को जो श्रेष्ठतम भारतीय मनीषा द्वारा रची गई हैं, जो पाठकों को प्रिय रही हैं, जिनमें भारतीय परंपरा और चिंतन की धारा है, उन्हें एकत्र करना, बाजार में बेहतर ढंग से वापस ले आने का संयोग जुटाना, आत्मनिर्भर और पाठक-निर्भर होने की दिशा में एक बड़ा कदम है. साहित्य भवनकी स्थापना 1917 में महान हिंदी सेवी राजर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन की अगुआई में हुई थी. इस प्रकाशन ने निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पन्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, परशुराम चतुर्वेदी से लेकर नामवर सिंह का लेखन भी पहली बार प्रकाशित किया. शरतचंद्र, ताराशंकर वंद्योपाध्याय, क्षितिमोहन सेन, सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या से लेकर महाश्वेता देवी तक को बांग्ला से हिंदी में ले आया. साहित्य भवन के वर्तमान निदेशक अलंकार टण्डन ने कहा कि, साहित्य भवन से लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में एक हजार से अधिक दुर्लभ किताबें प्रकाशित हुई हैं. राजकमल प्रकाशन समूह में साहित्य भवन प्रा.लि. का शामिल होना न केवल पब्लिकेशन इंडस्ट्री के लिए, बल्कि साहित्यिक दृष्टिकोण से भी एक महत्त्वपूर्ण परिघटना है. 

पूर्वोदय प्रकाशन की स्थापना हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक जैनेन्द्र ने की थी. उनके सुपुत्र प्रदीप कुमार का कहना है, हमारे लिए यह बहुत सम्मान की बात है कि पूर्वोदय प्रकाशन की विरासत अब राजकमल प्रकाशन समूह के प्रतिष्ठित हाथों में है. रेमाधव प्रकाशन तीन दोस्तों, अतुल गर्ग, अशोक भौमिक और माधव भान के जोश और उत्साह से शुरू हुआ था. इन्होने शुरुआत बांग्ला के मूर्धन्य लेखक सत्यजीत रे, शंकर, श्रीपन्थ, सुनील गंगोपाध्याय की किताबों के हिंदी अनुवाद से की. आकर्षक कवर और अच्छे प्रोडक्शन से इनकी बड़ी पहचान आरम्भ से ही बन गई. रेमाधव के सह-संस्थापक माधव भान का कहना है, 'रेमाधव पब्लिकेशन्स का राजकमल प्रकाशन संस्थान के साथ जुड़ना हमारे लिए गौरव की बात है. मुझे खुशी है कि रेमाधव की किताबें, अपनी परंपरा के अनुरूप शानदार प्रोडक्शन के साथ अब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होंगी. सारांश प्रकाशन के संस्थापक मोहन गुप्त ने हिंदीतर भारतीय भाषाओं के साहित्य और विश्व साहित्य की चुनिंदा कृतियों के अनुवाद साथ ही सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विषयों पर वैचारिक पुस्तकों के प्रकाशन के ध्येय के साथ शुरू किया था. उनका कहना है कि सारांश एक सपने की फलश्रुति थी. मुझे इसकी गुणवत्ता की रक्षा की चिंता थी. अब मैं आश्वस्त हूं कि

अब यह सुरक्षित हाथों में है.