मुंबई: संगीत उनके खून में और सुर साधना सांसों में थी. मैहर घराने की बेटी पद्म विभूषण अन्नपूर्णा देवी की सांसें शनिवार मुंबई में 91 वर्ष की अवस्था में थम गईं. वह विगत दस साल से बीमार चल रही थीं. उनके निधन से संगीत जगत में शोक की लहर है. अन्नपूर्णा देवी का जन्म 1927 में मैहर घराने के संस्थापक बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खान व मदिना बेगम के घर हुआ था. वह बाबा की इकलौती बेटी और तीन भाईयों के बाद चौथी संतान थीं, इसलिए बाबा की बेहद लाडली भी थीं. उनका विवाह पंडित रविशंकर से हुआ था. उनसे एक बेटा शुभेंद्र शंकर थे, जिनकी अमेरिका में सड़क हादसे में 1992 में मौत हो गई थी. अन्नपूर्णा देवी को बचपन से वाद्य यंत्रों से लगाव था. अपने पिता व गुुरु बाबा अलाउद्दीन खान के मार्ग दर्शन में उन्होंने कई वाद्य यंत्रों पर महारत हासिल की. लेकिन उनकी पहचान चंद्र सारंग यंत्र और सुरबहार वाद्य में निपुणता को लेकर थी. उन्होंने मैहर घराने की परपंरा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
पंडित हरि प्रसाद चौरसिया को अन्नपूर्णा देवी का शिष्य बनने की कहानी बेहद यादगार है. कहते हैं बचपन में अलाउद्दीन खां ने उन्हें इलाहाबाद में बांसुरी बजाते सुना था. उन्होंने कहा था कि मैहर आ जाओ, मैं तुम्हें सिखाऊंगा. हरि प्रसाद ने पिता के डर से मना कर दिया. इस पर बाबा अलाउद्दीन खां ने कहा कि घर छोड़कर आना चाहो, तो भी आ जाओ, मैं पूरा ध्यान रखूंगा. अगर अभी नहीं आ सकते, बाद में आना चाहो, तो मेरे मरने के बाद भी मेरी बेटी से सीख सकते हो. ये बात हरि प्रसाद चौरसिया के दिमाग में थी. पर फिल्मी संगीतकारों के लिए अन्नपूर्णा देवी के दिमाग में अच्छी इमेज नहीं थी. हरि प्रसाद चौरसिया सीखने पहुंचे, तो उन्होंने मना कर दिया. घर से निकाल दिया. हरि प्रसाद दोबारा पहुंचे, तो पुलिस बुलाने की धमकी दी. तीन साल कोशिश के बाद वो तैयार हुईं. उन्होंने हरि प्रसाद से कुछ बजाकर सुनाने को कहा. उन्होंने कहा कि सीखना है, तो जीरो से शुरू करना पड़ेगा. उन्हें अपनी गंभीरता साबित करने के लिए हरि प्रसाद चौरसिया ने दाएं के बजाय बाएं हाथ से बजाना शुरू किया. उसके बाद मानो हरि प्रसाद चौरसिया की जिंदगी बदल गई. अन्नपूर्णा जी उनके लिए गुरु ही नहीं, मां जैसी थीं. मैहर घराने के लोगों ने निर्णय लिया है कि अन्नपूर्णा देवी के अस्थि कलश को भी मदिना भवन में स्थापित किया जाएगा. अंतिम संस्कार मुंबई में होगा, उसके बाद अस्थि कलश मैहर लाया जाएगा. याद रहे कि बड़े खान साहब के निधन के बाद मैहर घराने की परंपरा को उनके शिष्य आगे बढ़ा रहे हैं. अन्नपूर्णा देवी के शिष्य भी मैहर घराने को अलग पहचान दे रहे हैं. उनके शिष्यों में आशीष खान (सरोद), अमित भट्टाचार्य (सरोद), बहादुर खान (सरोद), बसंत काबरा (सरोद), हरिप्रसाद चौरसिया (बांसुरी), जतिन भट्टाचार्य (सरोद), निखिल बनर्जी (सितार), नित्यानंद हल्दीपुर (बांसुरी), पीटर क्लाट (सितार), प्रदीप बारोट (सरोद), संध्या फड़के (सितार), सास्वती साहा (सितार), सुधीर फड़के (सितार), सुरेश व्यास (सरोद) सहित दर्जनों होनहार शामिल हैं. अन्नपूर्णा देवी के निधन की खबर सुनते ही सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया है. सुरों की इस साधिका को जागरण हिंदी का भी नमन!