'भारत मां के दो वीर सपूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सांस्कृतिक और शैक्षणिक क्रांति के अगुआ बाल गंगाधर तिलक को आजादी के दीवाने चंद्रशेखर आजाद के साथ याद किया. तिलक प्रख्यात समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और आधुनिक भारत निर्माताओं में एक थे. उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी गई थी, जिसका मतलब है जो 'लोगों द्वारा सम्मानित' हो. तिलक ने मराठी में 'मराठा दर्पण' और केसरी नाम से दो दैनिक अखबार शुरू किए, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. तिलक अखबार में अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की खूब आलोचना करते थे. अखबार केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया. एक बार जब 'केसरी' में दो क्रांतिकारियों का बचाव करने और स्‍वराज का आह्वान करने के चलते जब उन्‍हें 6 साल के लिए बर्मा के मंडले जेल भेजा गया तब उन्‍होंने 400 पन्‍नों की किताब 'गीता रहस्‍य' लिख डाली. 
अपने जेल जीवन के दौरान 'गीता रहस्‍य' लिखने के पीछे की वजह उन्होंने खुद इन शब्दों में लिखी थी. 'वर्षों से मेरा यह विचार था कि भगवद्गीता पर आजकल जो टीकाएं प्रचलित हैं, उनमें से किसी में उसका रहस्य ठीक से नहीं बताया गया. अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणत करने के लिए मैंने पश्चिमी और पूर्वी तत्वज्ञान की तुलना करके भगवद्गीता का भाष्य लिखा.' इस पुस्तक में तिलक ने श्रीमदभगवद्गीता के कर्मयोग की विस्तृत व्याख्या की है. इस पुस्तक के महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि महात्मा गांधी ने गीता-रहस्य पढ़ कर टिप्पणी दी थी, “गीता पर तिलकजी की यह टीका ही उनका शाश्वत स्मारक है.” 'स्‍वराज मेरा जन्‍मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा.' उनके इस वाक्य ने देश भर में आजादी के दीवानों को एक दिशा दी. तिलक ने देशवासियों की दशा में सुधार के लिए पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के महत्त्व को समझा और संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए. गुलाम भारत के लोग अपने मूल्यों और महानविचारों को लेकर जागरुक हों, इसके लिए तिलक ने काफी प्रयास किया. उन्होंने कई शिक्षा केंद्रों की स्थापना की, और वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा दिया. उनकी एक पुस्तक का नाम 'ओरायन या वैदिक प्राचीनता की खोज' भी है.