नई दिल्लीः वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर संगम लाल त्रिपाठी भंवर के सम्मान में साहित्य संस्था संस्कृति परिषद व टीआरपी इंस्टिट्यूट के सौजन्य से एक काव्य संध्या का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की. संचालन वरिष्ठ कवि, ग़ज़लकार पवन शर्मा परमार्थी ने किया. इस दौरान कवियों ने जीवन दर्शन पर कई श्रेष्ठ रचनाएं सुनाकर दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी. वरिष्ठ गीतकार आरसी वर्मा साहिल का यह शेर; 'भले दिलकश हो मंजर फिर भी वीरानी नहीं जाती, कभी इंसान के दिल से परेशानी नहीं जाती' को बेहद  सराहना मिली तो पवन शर्मा परमार्थी के इस गीत ने वातावरण को रसमयी बनाया; 'क्रीड़ा की सोचे हम कैसे, हृदय में पीड़ा का घर है, संभव नहीं उतरता लगता, चढ़ा प्रेम का जो भी ज्वर है.' इस अवसर पर डॉक्टर संगम लाल भंवर का यह मुक्तक बहुत पसंद किया गया; 'प्यार करना निभाना अलग बात है, सब से मिलना मिलाना अलग बात है, ईद हो चाहे होली दिवाली भंवर, दिल से दिल को मिलाना अलग बात है.
इस मौके पर युवा कवि दीपेंद्र सिंह निहाल ने यह कविता पढ़ी; 'मैंने खुद को इस कदर अस्तर सा कर लिया, जब रिश्ते हल्के पढ़ने लगे तो खुद को उन में भर लिया.' सूर्य जीत मौर्य ने अपनी अवधी कविता पढ़ी; 'रंग खेलन मधुसूदन हमरे नगरिया आए, संग ग्वाला झुंड आवत सब डगरिया आए, केहुं बांध कमर में पिचकारी हसत सब लागे, माखन खाने यही हमरे डेहरिया आए.' कवि डॉ अखिलेश अकेला ने यह गीत; 'मानव का तन धारण कर सौभाग्य उतरकर आया है.' तो हरेंद्र प्रसाद यादव फकीर ने बेहद उम्दा ग़ज़ल पढ़ी, जिसका एक शेर यों था; 'जिनको पानी है शीघ्र पानी है अपनी मंजिल, उनकी रफ्तार बहुत तेज हुआ करती है.' फिल्म व पटकथा लेखक मनोज कुमार गुप्ता ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं. अंत में अध्यक्षता कर रहे वीर रस के ओजस्वी कविअ डॉक्टर जय सिंहआर्य ने देश के वीर शहीदों को नमन करते हुए अपनी एक रचना पढ़ी, जिसके बोल थे; 'खिल उठे प्यार की हर कली, खिलखिलाता चमन चाहिए, मुस्कुराती हुई यह धरा, मुस्कुराता गगन चाहिए…' अंत में संस्था के अध्यक्ष डॉ विनोद शंकर पांडे ने आमंत्रित अतिथि कवियों का आभार व्यक्त किया.