नई दिल्लीः गिरिजा कुलश्रेष्ठ का ताजा कहानी संग्रह 'कर्जा वसूली' आया है. गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने अपनी कहानियों में मध्यम निम्नवर्गीय जीवन और उनके संघर्षों को उकेरने का प्रयास किया है. छोटे–छोटे पारिवारिक,सामाजिक बिंदुओं को उठाकर उन्होंने कहानी में इस तरह पिरोया है कि वह बड़े फलक पर अपनी बात कह जाती हैं. स्त्रियों और जनसामान्य की व्यथा कथा कहने में गिरिजा कुलश्रेष्ठ की कहानियां समर्थ हैं. संग्रह की पहली कहानी 'अपने अपने कारावास' में कहीं परिचय और अपनेपन का सूत्र गहराई से जुड़ा हुआ लगता है, तो कहीं उथला उथला हवा हवाई जैसा हो जाता है. ये गहरे मनोविज्ञान की कहानी है. 'साहब के यहां तो', कर्जा वसूली','पियक्कड़' आदि कहानियां जन सामान्य के जीवन और उनकी मनः स्थिति को उद्घाटित करती हैं.
'एक मौत का विश्लेषण'सोम के बहाने मन की अनेक गांठो को खोलती एक बेहतर कहानी है. व्यक्ति अगर स्वयं अधिक महत्वाकांक्षी न भी हो तो भी अपनों की इच्छाओं के दबाव में घुट जाता है और इतना भ्रमित हो जाता है कि मौत ही उसे श्रेयस्कर लगती है. 'व्यर्थ ही 'कहानी आर्थिक तंगी वाले घर की लड़की जो जेठानी है, को अमीर घर से आई देवरानी के सामने किस तरह कमतर समझा जाता है, इसको बहुत ही सुंदर ढंग से लिखा है. अच्छे गुणों संस्कारों पर भी अमीरी भारी पड़ती है. पैसा बोलता है. 'सामने वाला दरवाजा' महानगरीय संस्कृति को दर्शाता है. भौतिक सुख साधन जुटाने की व्यस्तता में लोग एक दूसरे से किस हद तक कटते जा रहे हैं. उनका यह संग्रह बोधि प्रकाशन से आया है.इसमें कुल 13 कहानियां हैं. गिरिजा कुलश्रेष्ठ बाल साहित्य भी भरपूर रचा है. उनकी लेखनी यूं ही आगे बढ़ती रहे.
( कहानीकार आशा पाण्डेय की टिप्पणी)