नई दिल्लीः गिरिजा कुमार माथुर ने काव्य की सभी परंपराओं को तोड़ते हुए अपने वाक्य विधान पर विशेष ध्यान दिया. वे अनास्था के कवि नहीं थे और उन्होंने आधुनिकता को उचित संदर्भ में परिभाषित किया. वे अपनी कविता शब्दों से, लय से, छंद से तथा अन्य प्रतीकों को नए रूप में प्रस्तुत करके संभव करते हैं. प्रख्यात हिंदी आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने साहित्य अकादमी द्वारा गिरिजा कुमार माथुर जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर ‘गिरिजा कुमार माथुर: व्यक्तित्व और कृतित्व’ विषयक द्विदिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य देते हुए यह बात कही. आरंभिक वक्तव्य में हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि गिरिजा कुमार माथुर के काव्य में गीतात्मकता है. वे कविता में ‘अनुभूति के ताप’ को महत्त्वपूर्ण मानते थे. उन्होंने गीतों को एक नया संस्कार दिया.
बीज वक्तव्य में अजय तिवारी ने उनकी कविता के तीन प्रमुख तत्त्वों – रोमांटिकता, प्रकृति सौंदर्य और यर्थाथवाद को विस्तार से व्याख्यायित किया. आगे उन्होंने कहा कि बिना रोमांटिक हुए प्रगतिवादी भी नहीं हुआ जा सकता. उनकी कविता एक – आयामी नहीं है बल्कि वे विभिन्न आयामों के कवि हैं. अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि गिरिजा कुमार माथुर ‘लोकल’ से लेकर ‘ग्लोबल’ तक के कवि हैं. उनकी बौद्धिक प्रखरता एवं सम्यक दृष्टि उनको एक बड़े कवि के रूप में प्रतिष्ठित करती है. उन्होंने हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए आकाशवाणी के माध्यम से कई नए प्रयोग किए. इस अवसर पर गिरिजा कुमार माथुर रचना-संचयन (संपादक: पवन माथुर) का लोकार्पण भी किया गया. संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता सूर्यप्रसाद दीक्षित ने की और दिनेश कुशवाह तथा आशीष त्रिपाठी ने आलेख प्रस्तुत किए. संगोष्ठी के दूसरे सत्र की अध्यक्षता सौमित्र मोहन ने की और वशिष्ठ अनूप ने अपना आलेख प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का संचालन अकादमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.