चंडीगढ़ः हरियाणा कला परिषद चंडीगढ़ ने मनमुक्त मानव भवन में 'साहित्य में शिवं की अवधारणा' विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें चार देशों व कई प्रांतों के साहित्यकार उपस्थित हुए. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अनिल कौशिक, निदेशक हरियाणा कला परिषद चंडीगढ़ थे. अध्यक्षता डॉ उमाशंकर यादव, कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के उपाध्यक्ष डॉ कमलकिशोर गोयनका व मॉरीशस के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामदेव धुरंधर थे. साहित्य में शिवम की अवधारणा पर डॉ कमल किशोर गोयनका ने कहा कि साहित्य में सत्यम, शिवम, सुंदरम का संबंध आवश्यक है, लेकिन शिव इन तीनों के मध्य में हैं अतः वही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि हित की भावना साहित्य के मूल में ही निहित है, इसलिए जो हितकारी है वही साहित्य है. साहित्यकार रामदेव धुरंधर ने कहा कि साहित्य सब को जोड़ता है, समाज का पथ प्रदर्शन करता है और जीने की प्रेरणा देता है. विदेशों में गए गिरमिटिया मजदूर साहित्य की बदौलत ही विकट परिस्थितियों में भी अपना आत्मबल और अस्तित्व बचाए रख पाए हैं. उन्होंने कहा कि मैं साहित्य के बीज अपने देश में बोता हूं और फसल भारत में काटता हूं. मुख्य अतिथि अनिल कौशिक ने राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य में मनोरंजन के साथ उपदेश का समावेश होना चाहिए तभी वह अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पाएगा. अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ उमाशंकर यादव ने स्पष्ट किया कि जीवन और समाज से कटे हुए रचनाकार का साहित्य थोड़े समय बाद ही अप्रासंगिक हो जाता है. वास्तव में लोक हित की भावना ही रचना और रचनाकार को महान बनाती है.

 

डॉ कृष्णा आर्य ने प्रार्थना गीत प्रस्तुत किया. डॉ राजन ने अपनी तमिल कविता के माध्यम से साहित्य की सुंदरता को व्यक्त किया, डॉ काबरा ने भी साहित्य की सुंदर व्याख्या प्रस्तुत की. डॉ दिग्विजय शर्मा ने कहा कि लेखन ऐसा चाहिए, जिसमें ईमान, सद्कर्म और मर्म हो. जिसमें भगवान, साहित्य का मतलब साथ-साथ अथवा कल्याण की भावना पर बल हो. डॉ रवि भूषण ने यथार्थ साहित्य पर बल दिया. इस अवसर पर डॉ कमलकिशोर गोयनका तथा रामदेव धुरंधर को 'डॉ मनुमुक्त मानव शिखर सम्मान' और अन्य विद्वानों के साथ डॉ दिग्विजय शर्मा को 'डॉ मनुमुक्त मानव स्मृति साहित्य सम्मान' प्रदान किया गया. चीफ ट्रस्टी डॉ रामनिवास मानव के साथ सभी मंचस्थ विद्वानों ने शॉल, सम्मान पत्र तथा स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ जितेंद्र भारद्वाज ने किया. अंत में संगोष्ठी में हुए विचार-विमर्श का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए पूर्व प्राचार्य डॉ शिवताज सिंह ने कहा कि उदात्त संदेश ही साहित्य को महान बनाता है तथा महान साहित्य ही सार्वजनिक, सर्वकालिक और सार्वभौमिक होता है. इस साहित्यिक संगोष्ठी में डॉ हरीश प्रसाद जोशी, खगेन्द्र नाथ वियोगी, डॉ दिग्विजय शर्मा, डॉ एम गोविंद राजन, डॉ किशोर काबरा, डॉ कृष्णकुमार 'आशु', नलिन विकास, डॉ शिवताज सिंह नारनौल, संजय पाठक, डॉ रविभूषण , सुमेर सिंह यादव, विपिन शर्मा, महेन्द्र वर्मा, महेंद्र गौड़, डॉ आनंद राय, किशनलाल शर्मा, डॉ जितेंद्र भारद्वाज, गजानंद कौशिक, परमानंद दीवान, सत्यनारायण वर्मा , रमेशचन्द्र गौड़, उमेदपाल यादव, कृष्णअवतार जांगिड़, बनवारीलाल शर्मा, रामगोपाल अग्रवाल, नन्दलाल नियारा, सतवीर चौधरी, नन्दलाल खामपुरा, मुकेश शर्मा, एनडी शर्मा, राजीव गौड़, धर्मवीर विद्यार्थी, डॉ कांता भारती आदि लोग उपस्थिति थे.