नई दिल्ली:  मिर्जा गालिब को भला कौन नहीं जानता, पर उनके आलोचक को भी सौ साल बाद भी याद किया जाना एक बड़ी बात है.  फ़े सीन एजाज़ का कहना है कि किसी सर्जनात्मक लेखक को बरसों बाद याद किया जाना स्वाभाविक है, लेकिन किसी आलोचक को सौ साल बाद भी याद रखा जाए, इसकी मिसाल बहुत कम मिलती है. इसी तरह प्रो. इब्ने कँवल का कहना है कि कोई बड़ी बात कहने/करने के लिए तवील उम्र होना ज़रूरी नहीं, बिजनौरी इसकी मिसाल हैं, वे ग़ालिब-तनक़ीद के सिकंदर हैं. साहित्य अकादमी सभागार में 'अब्दुर्रहमान बिजनौरी: जीवन एवं कृतित्व' पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के आखिरी दिन ऐसी ही ढेरों बातें सामने आईं. फ़ारूक़ अर्गली ने अब्दुर्रहमान बिजनौरी: उर्दू तारीख़ की लासानी शख्सियतशीर्षक अपने आलेख में बिजनौरी के जीवन-क्रम का विवरण देते हुए उनके कृतित्व की खासियत का बयान किया. डा. राशिद अनवर राशिद ने अब्दुर्रहमान बिजनौरी की शायरी पर केंद्रित अपने आलेख में बताया कि बिजनौरी ने केवल 18 नज़्में लिखीं, जिनको पढ़कर एक अच्छे शायर की संभावनाएँ उनमें नज़र आती हैं, लेकिन ज़िंदगी ने उन्हें इसे साबित करने का मौका नहीं दिया. हक़्क़ानी-अल क़ासमी और डा. सरवर-उल हुदा और क़ासिम ख़ुर्शीद ने अपनी-अपनी तरह से बिजनौरी की आलोचना कृति महासिने कलामे ग़ालिबके महत्त्व को उजागर किया, डा. दानिश इलाहाबादी ने अब्दुर्रहमान बिजनौरी: हयात और कारनामेशीर्षक अपने आलेख में विस्तार से बिजनौरी की जीवनी और कृतित्व को रेखांकित किया.

प्रो. अनीस अशफ़ाक़ ने उर्दू आलोचकों द्वारा बिजनौरी पर उठाए गए सवालों को उद्धृत करते हुए बिजनौरी को एक कामयाब नक़्क़ाद के रूप में स्थापित किया. ग़ालिब के बारे में बिजनौरी के इन वाक्यों को प्रायः सभी वक्ताओं ने उद्धृत किया कि ग़ालिब ने एक ही मानी में किसी लफ़्ज़ का दुबारा इस्तेमाल नहीं कियातथा हिंदुस्तान की इलहामी किताबें दो हैं, पहली, वेदे मुक़द्दस और दूसरी दीवाने ग़ालिब.याद रहे कि साहित्य अकादमी द्वारा अकादमी सभाकक्ष में उर्दू के प्रतिष्ठित आलोचक अब्दुर्रहमान बिजनौरी के जीवन एवं कृतित्व पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ था, जिसके दूसरे दिन तीन विचार-सत्र आयोजित हुए थे, जिनकी अध्यक्षता फ़े सीन एजाज़, प्रो. अनीस अशफ़ाक़ तथा प्रो. इब्ने कँवल ने की. इन सत्रों में विद्वानों द्वारा अब्दुर्रहमान बिजनौरी के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर आलेख पढ़े गए. कार्यक्रम का संचालन करते हुए अकादेमी के विशेष कार्याधिकारी डा. देवेंद्र कुमार देवेश ने अंत में औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।