नई दिल्लीः सुशांत झा द्वारा अंग्रेजी से अनूदित पुस्तक 'लिथुआनिया का इतिहास' का विमोचन राजधानी में जानेमाने लेखकों और अतिथियों की उपस्थिति में संपन्न हुआ. कार्यक्रम में लिथुआनिया के राजदूत और वहां के विदेश सचिव सहित लेखक पुष्पेश पंत, नमिता गोखले, नीता गुप्ता, इस पुस्तक के चार लेखकों में से एक लिथुआनिया के इतिहासकार अलफोंसस एद्यियंटस, आईसीसीआर के अध्यक्ष लोकेश चंद्र, महानिदेशक अखिलेश मिश्र, पत्रकार, संपादक व केंद्रीय मंत्री रहे एमजे अकबर और काफी समय तक लिथुआनिया में भारत के राजदूत रहे अजय बिसारिया की उपस्थिति उल्लेखनीय थी. लिथुआनिया के विदेश सचिव ने रामचंद्र गुहा के एक लेख का जिक्र करते हुए बताया कि दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के नज़दीकी रहे हरमन कालेनबाख भी लिथुआनिया के रहनेवाले थे. पुष्पेश पंत ने अपने भाषण में बताया कि जिस रामचंद्र गुहा की पूरी गांधी श्रृंखला का भी अनुवाद सुशांत झा ने ही किया है. लिथुआनिया में अनुवादकों के महत्त्व का भी इस कार्यक्रम में कई बार न केवल जिक्र हुआ, बल्कि विदेश सचिव ने इस बात के लिए कृतज्ञता जताई की झा ने रिकॉर्ड समय में इस दुरूह काम को कर दिया. 

श्रोताओं द्वारा लिथुआनिया के इतिहास में उस दौर के एक महत्त्वपूर्ण कवि जोनास मेसियुएस की कविता के इस पुस्तक में शामिल नहीं होने के सवाल पर इतिहासकार अलफोंसस एद्यियंटस ने कहा, 'यह किताब काफी कम समय में लिखी गई थी और इसका मकसद राजनीतिक था. सन् 2013 में लिथुआनिया को यूरोपीय संघ में शामिल होना था और लिथुआनिया के विदेश मंत्री ने पूरे यूरोप में किताब को प्रचारित- प्रसारित करने और संघ के अध्यक्ष को भेंट करने के लिए एक संक्षिप्त राजनीतिक इतिहास लेखन की परियोजना शुरू करने का प्रस्ताव दिया था. कम समय में हजार साल का इतिहास ही काफी मोटा हो गया था और इस वजह से सांस्कृतिक और साहित्य गतिविधियों,नामों को ज्यादा जगह नहीं मिल पाई. वे आगे इसका प्रयास करेंगे.' एक पत्रकार ने पूछा कि लिथुआनिया में भारत की छवि काफी सीमित है. वह सिर्फ संस्कृत, योग और गांधी तक सीमित है. इस पर वहां के विदेश सचिव ने कहा कि उनके देश में भारत की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण छवि संस्कृत, योग और गांधी ही है और ये बनी भी रहेगी क्योंकि लिथुआनिया के बहुत सारे लोग मानते हैं कि लिथुआनिया की भाषा का संबंध कहीं न कहीं संस्कृत से है और गांधी व कालेनबाख की दोस्ती किंवदंती स्वरूप है, जिस पर लिथुआनिया को भी गर्व है. बहरहाल यह पुस्तक बाजार में या एमेजॉन पर उपलब्ध नहीं होगी, किसी को चाहिए तो वह नई दिल्ली स्थित लिथुनिआई दूतावास को पत्र या ईमेल लिख कर पुस्तक हासिल कर सकते हैं.