नई दिल्लीः भारतीय ज्ञानपीठ ने वाक् सीरीज़ के तहत 'गांधी: भाषा का खादी सौंदर्य' विषय पर राजधानी दिल्ली में लेखक अजय तिवारी के सान्निध्य में एक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर समाजवादी, गांधीवादी लेखक पत्रकार अरविंद मोहन ने अपने विचार व्यक्त किए. अपने स्वागत संबोधन में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने भाषा में खादी के सौंदर्य की अवधारणा पर प्रकाश डाला. चंपारण पर आई अपनी पुस्तक के हवाले से पत्रकार लेखक एवं गांधीवादी चिंतक अरविंद मोहन ने चंपारण में गांधी की भूमिका को विस्तार से उल्लेखित किया. उनका कहना था कि गांधी खादी के प्रयोग से इतिहास को दो सौ साल पहले खींच कर ले गए. वह खुरदुरी ही सही खादी से मैनचेस्टर की मिलों को पीट दिया, इतिहास को पीट दिया, देश में रोजगार, कपड़ा के साथ ही खादी के सौंदर्य को स्थापित किया. सूटबूट की जगह कुर्ता-पायजामा और टोपी के सौंदर्य को स्थापित किया. कपड़ों की गुणवत्ता उनका मानक नहीं थी. भाषा और संचार के साथ वह यह प्रयोग पहले ही दक्षिण अफ्रीका में शुरू कर चुके थे. मशीनों की होड़ में पड़ने के बजाय विषय की गुणवत्ता के आधार पर अपने प्रकाशनों के माध्यम से, हिंदी की प्रमुखता के माध्यम से, समाचार से न खेलकर, गीता से लेकर कहीं भी छपे विचार तक, जो भी उपयोगी है, उनका उपयोग उन्होंने किया.
चंपारण गांधी के लिए नया था. यहां न तो उन्हें बोली तक नहीं मालूम थी. इस समय तक अंग्रेजों ने अपना सशक्त संचार माध्यम भी स्थापित कर लिया था. अंग्रेज जब भारत आए थे, तो लंदन तक खबर पहुंचने में इक्कीस दिन लगते थे, पर गांधी के चंपारण आने तक हर आधी घंटे में लंदन तक खबर पहुंचने लगी थी. संचार, रेलवे व जासूसों का ऐसा जाल बिछ चुका था कि किसके घर में क्या पक रहा है इसकी खबर तक उन्हें होती थी. इसलिए चंपारण में गांधी के प्रयोग के अपने मायने हैं. यहां न तो उन्होंने अखबार निकाला, न भाषण दिया, न किसी को देने दिया, पर सच्चाई, अहिंसा और निडरता के सहारे एक झटके में अंग्रेजों के नेटवर्क को तोड़ दिया. चंपारण से जो शुरुआत हुई, वह वहां से देश में, गांधी के जीवन में और अंततः पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद की विदाई के रूप में हुई. उन्होंने बताया कि किस तरह गांधी सादगी से पत्र लिखते थे, लोगों से संवाद करते थे तथा भाषा या आचरण में किसी तरह के आडंबर के विरोधी थे. प्रोफेसर अजय तिवारी ने अरविंंद मोहन के सादगीपूर्ण संभाषण को गांधीवादी तरीका बताया और गांधी की भाषाई दृष्टि एवं स्वराज्य के प्रतीक चरखा एवं अन्य प्रत्ययों की विवेचना की. संगोष्ठी का स॔चालन लेखक साहित्यकार ओम निश्चल ने किय