उज्जैनः महात्मा गांधी के विचार खुली किताब की तरह उनके अपने जीवन में भी पारदर्शी ढंग से साफ़ दिखाई देते हैं. गांधी का दर्शन उनके जीवन में प्रतिबिम्ब की तरह नज़र आता है. उनके यहाँ कथनी और करनी का कोई अंतर नहीं है. गांधी को पढ़ने से ज़्यादा आज के समाज के लिए अपने जीवन में, आदतों में शामिल करने की महती ज़रूरत है. ये बातें स्थानीय आंनद भवन में मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन की उज्जैन इकाई द्वारा गांधी पर आयोजित एक कार्यक्रम में लेखकों, वक्ताओं ने कही. माधव कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो अरुण वर्मा ने कहा कि गांधी को हम महज सत्तर सालों में ही भूल गए हैं. आज हमारी जीवन पद्धति, सरकारी कामकाज और सरकारी नीतियों से गांधी का दर्शन दूर होता जा रहा है. लेकिन गांधी के विचारों को बार-बार पढ़े जाने, गुने जाने और आत्मसात करने की ज़रूरत है. देवास से आए कथाकार और चिंतक मनीष वैद्य ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि गांधी का दर्शन हमारे लोक से आया हुआ है और सैकड़ों सालों के मानवीय सभ्यता के विकास का निचोड़ है. इसलिए वह हमारी जीवन शैली में भी बदलाव की बात करता है लेकिन हम नए जमाने की होड़ में उससे बहुत दूर निकलते जा रहे हैं. हिंसा और नफरत हमें कहीं नहीं ले जाते. प्रेम और मनुष्यता ही गांधी दर्शन का सार है. उनका धर्म सत्य है, पाखंड नहीं. वर्तमान हालातों में गांधी बेहद प्रासंगिक हो जाते हैं.

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने अपने जीवन प्रसंगों के ज़रिए गांधी के आसान संदेशों को सामने रखा. उन्होंने गांधी को जीवन में उतारने की पैरवी की. मनीष शर्मा ने आयोजन का सूत्र संचालन करते हुए गांधी दर्शन की भूमिका प्रस्तुत की. वरिष्ठ चित्रकार श्रीकृष्ण जोशी ने भी गांधी के जीवन को प्रेरक निरुपित किया और कहा कि इससे हमारा समाज सही दिशा में आगे बढ़ सकता है. विकास आयुक्त और गायक प्रतीक सोनवलकर ने गांधी के प्रसिद्ध भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए' गाया तो सभागार तालियों से गूँज उठा. अतिथियों का स्वागत मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन उज्जैन इकाई के अध्यक्ष आरपी गुप्ता, सचिव अवधेश वर्मा, विनोद काबरा आदि ने किया. इस अवसर पर प्रो हरिमोहन बुधौलिया, साहित्यकार प्रदीप उपाध्याय, विद्युत मंडल उपभोक्ता फोरम इंदौर के अध्यक्ष वीके गोयल, राजीव गुप्ता, राजेश सक्सेना, गीता नायक, पुष्पा चौरसिया, क्षमा सिसौदिया, शैलेन्द्र वर्मा, अशोक रक्ताले, श्वेता श्रीवास्तव और शोभन त्रिवेदी सहित कई गणमान्यजन उपस्थित थे. आभार  प्रो इसरार मोहम्मद खान ने किया. याद रहे कि मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रदेशभर में गांधी के डेढ़ सौ साल पूरे होने के अवसर पर इस तरह के आयोजन कर रहा है.