नई दिल्लीः साहित्योत्सव में हर ओर गाँधी की गूंज है. साहित्य अकादमी ने गाँधी जी के नाम पर कई कार्यक्रम किए हैं, जिसमें उन पर आधारित कई राष्ट्रीय संगोष्ठी शामिल है. प्रथम सत्र 'इक्कीसवीं सदी में गाँधी की प्रासंगिकता' पर हुआ. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात आलोचक एवं कवि विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि गाँधी के चिंतन का आरंभ बिंदु शोषितों के प्रति करुणा से शुरू होता है, जबकि इसी समय दूसरे महान विचारक कालमार्क्स शोषकों के प्रति आक्रोश से भरे रहे. इस तरह हम गाँधी जी पूरी सोच में कोमलता और करुणा को पाते हैं. उन्होंने कहा कि गाँधी का मॉडल सभ्यता के लिए अलग और विकास के लिए अलग था. उनके इस मॉडल में स्थानीय परिवेश की भागीदारी सर्वप्रथम थी. आज इक्कीसवीं सदी में हम गाँधी के विचारों के साथ ही अपनी सभ्यता को बचा पाएंगे.
इसी सत्र में नंदकिशोर आचार्य ने गाँधी के अर्थशास्त्र को नैतिक अर्थशास्त्र बताते हुए कहा कि आनेवाले समय में ऐसे ही अर्थशास्त्र के सहारे विकास की कल्पना की जा सकती है. अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि आज भी गाँधी के विचारों को अपने जीवन में समाहित कर 21 वीं सदी की बहुत सी मुश्किलों से निजात पा सकते हैं. नीरा चंदोक ने भूमंडलीकृत विश्व में स्वराज के तहत सत्य और अहिंसा के द्वारा ही गाँधी को सही मायने में समझा जा सकता है. मिनी प्रसाद ने गाँधी की पारिस्थतिकी संबंधी अवधारणा विषय पर अपनी बात रखी. 'गाँधी और दलित आंदोलन' पर नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में गोपाल गुरु ने गाँधी तथा हरिजन की अवधारणा पर श्यौराज सिंह बेचैन ने दलित आंदोलनों तथा साहित्य पर गाँधी का प्रभाव विषयों पर अपने विचार रखे.