ख्वाजा अहमद अब्बास की आज जयंती है. 7 जून 1914 को पानीपत में एक खानदानी साहित्यिक परिवार में उनका जन्म हुआ. हिंदी साहित्य, सिनेमा, लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने 'अलीगढ़ ओपिनियन' शुरू किया. 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में लंबे समय तक बतौर संवाददाता और फ़िल्म समीक्षक काम किया. इनका स्तंभ 'द लास्ट पेज' सबसे लंबा चलने वाले स्तंभों में गिना जाता है. अपने 70 साल के जीवन में 70 से भी अधिक किताबें लिखने और 40 से ज्यादा फिल्में देने वाले ख्वाजा अहमद अब्बास की पहली कहानी 'अबाबील' थी. इस कहानी को लेकर उनका और मशहूर लेखक कृष्ण चंदर का संवाद तब काफी चर्चा का विषय बना था. कहते हैं कि इस कहानी को पढ़कर  कृष्ण चंदर ने उनसे पूछा, 'तुमने गांव का जीवन देखा है, जो ऐसी कहानी लिख दी?' अब्बास ने जवाब दिया था, 'नहीं, कल्पना से लिखी है.' कृष्ण चंदर ने फिर पूछा, 'बगैर अनुभव के गांव के जीवन पर कहानी कैसे लिख ली?' ख्वाजा का जवाब था,'ठीक वैसे ही जैसे कातिल के बारे में लिखने से पहले कत्ल करना जरूरी नहीं होता…'
ख्वाजा अहमद अब्बास मूलत: एक किस्सागो थे, एक उम्दा कथाकार. उसके बाद पत्रकार और फिल्मकार. आज के जमाने के मशहूर महानायक अमिताभ बच्चन को पहला ब्रेक अपनी फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' में ख्वाजा अहमद अब्बास ने ही दिया था. इसका भी एक मशहूर किस्सा है. अमिताभ बच्चन फिल्मनगरी में काफी धक्के खाते हुए अब्बास के पास पहुंचे थे. अब्बास साहब ने उनका इंटरव्यू वगैरह करने के बाद जब निजी जानकारी में पिता का नाम देखा तो पूछा कि क्या उन्होंने हरिवंश राय बच्चन से फिल्मों में काम करने की अनुमति ली है. बिग बी के हामी भरने के बाद भी ख्वाजा साहब ने विदेश प्रवास पर गए हरिवंशराय बच्चन को टेलीग्राम कराया और उनकी अनुमति के बाद अमिताभ बच्चन को काम दिया. अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में यह स्वीकारा भी था कि वह ख्वाजा ही थे, जिन्होंने उनके हुनर को पहचाना था. आज वह जो भी हैं उसमें ख्वाजा अहमद अब्बास के उस ब्रेक का बहुत योगदान है.