अमरावतीः कुम्भ मेले के बाद मेदारम जतारा, देश का दूसरा सबसे बड़ा उत्सव है, जिसे तेलंगाना की दूसरी सबसे बड़ी कोया जनजातीय चार दिनों तक मनाती है. एशिया का सबसे बड़ा जनजातीय मेला होने के नाते, मेदारम जतारा देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है. यह उत्सव 'माघ' महीने में पूर्णमासी को हर दो वर्ष में एक बार मनाया जाता है. सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था. उनकी प्रतिमा पूरे कर्मकांड के साथ कान्नेपल्ली के मंदिर में स्थापित है. यह मेदारम के निकट एक छोटा सा गांव है. भोर में पुजारी, पवित्र पूजा करते हैं. पारंपरिक कोया पुजारी पहले दिन सरलअम्मा के प्रतीक-चिह्नों 'आदरेलु, पवित्र पात्र और बंडारू, हल्दी और केसर के चूरे का मिश्रण' को कान्नेपाल्ले से लाते हैं और मेदारम में मंच पर स्थापित करते हैं. यह कार्यक्रम पारंपरिक संगीत डोली, ढोलक, अक्कुम, पीतल का मुंह से बजाने वाला बाजा तूता कोम्मू, सिंगी वाद्य-यंत्र, मंजीरा इत्यादि के बीच पूरा किया जाता है. साथ में नृत्य भी होता है. तीर्थयात्री इस पूरे जुलूस में शामिल होते हैं और देवी के सामने नतमस्तक होकर अपने बच्चों, आदि के लिये आशीर्वाद मांगते हैं.
उसी दिन शाम को सम्माक्का के पति पागीडिड्डा राजू के प्रतीक-चिह्नों – पताका, आदेरालु और बंडारू को पुन्नूगोंदला गांव से पेनका वाड्डे लेकर आते हैं. यह गांव कोठागुदा मंडल, महबूबाबाद में स्थित है. वहां से प्रतीक-चिह्नों को मेदारम लाया जाता है. इसके अलावा सम्माक्का के बहनोई गोविंदराजू और सम्माक्का की बहन नागुलअम्मा के प्रतीक-चिह्नों को भी कोंडाई गांव से डुब्बागट्टा वाड्डे लेकर आते हैं. यह गांव एतुरूनागराम मंडल, जयशंकर भूपालपल्ली में स्थित है. यहीं से प्रतीक-चिह्नों को मेदारम लाया जाता है. विभिन्न गांवों के श्रद्धालु और विभिन्न अनुसूचित जनजातियां यहां जुटती हैं. साथ ही करोड़ों तीर्थयात्री मुलुगू जिले में आते हैं और पूरे हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते हैं. जतारा त्योहार के आयोजन में तेलंगाना सरकार का जनजातीय कल्याण विभाग सहयोग करता है. कान्नेपाल्ली के गांव वाले 'आरती' करते हैं तथा सरलअम्मा की भव्य विदाई का आयोजन करते हैं. इसके बाद सरलअम्मा की प्रतिमा को 'जामपन्ना वागू', एक छोटी नहर जिसका नाम जामपन्ना के नाम पर रखा गया है, के रास्ते मेदारम गाद्दे यानी मंच पर लाया जाता है. यहां सरलअम्मा की विशेष पूजा होती है और अन्य कर्म-कांड किये जाते हैं. तीस लाख से अधिक श्रद्धालु सरलअम्मा के दर्शन करते हैं तथा मेदारम जतारा के दौरान विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. इस त्योहार का लक्ष्य जनजातीय संस्कृतियों, उत्सवों और विरासत के प्रति लोगों को जागरूक करना तथा आगंतुकों और तेलंगाना के जनजातीय समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते को कायम रखना है.