नोएडा: प्रतिबिम्‍ब संस्था की ओर से अंत्रेप्रिनियोर्स सभागार में कवि राकेश मिश्र के हाल ही में प्रकाशित तीन कविता संग्रहों 'अटक गई नींद', 'चलते रहे रात भर' और 'ज़िन्दगी एक कण है' को लेकर एक परिचर्चा आयोजित हुई, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई साहित्यकार, कवि एवं आलोचक जुटे. कार्यक्रम की अध्‍यक्षता हिंदी के  आलोचक प्रो अजय तिवारी ने की. गढ़वाल विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति एवं पूर्व वित्‍त एवं रक्षा सचिव योगेन्‍द्र नारायण मुख्‍य अतिथि थे. जाने माने कवि लीलाधर मंडलोई, कवि प्रियदर्शन एवं प्रो. सुधा उपाध्‍याय मुख्य वक्ता थे. कार्यक्रम का संचालन ओम निश्चल ने किया. करीब 200 सुधी साहित्य प्रेमियों की मौजूदगी में देर शाम तक कविता के बहाने चर्चाएं होती रहीं.  राकेश मिश्र प्रशासनिक अधिकारी हैं, इसलिए उनकी कविताओं में रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी तमाम बातों पर कलम चली है. 'अटक गई नींद' में उनकी प्रेम कविताएं शामिल हैं. कार्यक्रम में शामिल दिग्गज साहित्यकारों ने भी माना कि राकेश मिश्र की कविताएं इसी संसार से उपजी हुई हैं. उनके तीनों कविता संग्रह में 450 से भी अधिक कविताएं शामिल हैं, जिनमें जीवन का हर पहलू दिखता है.
लीलाधर मंडलोई का कहना था कि कविता प्रवाह में आती तो है पर उसमें तारतम्यता नहीं होती. हर कोई कवि है पर कुछ लोग उसको आगे ले जाते हैं और उसको जनता तक पहुँचाने की कोशिश करता है. मीर को याद करते हुए कहा कि राकेश मिश्र की कविताओं में कुछ कुछ अंश मिलता है. कविता पंक्तियों के बीच में होती हैउनकी कविताओं में मानवीय संघर्ष, प्रेम, संवेदनाएं, सामाजिक विसंगतियां और विविध मनोभाव दिखते हैं. राकेश मिश्र अपनी कविताओं में आसान शब्दों में बड़ी गहरी बात कह जाते हैं. तीनों काव्यसंग्रहों की भूमिका मुंबई विश्वविद्यालय के साहित्य चिंतक प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने लिखी है. उन्हीं भूमिकाओं में से 'प्रेम बौद्धिक मीमांसा की ओर अग्रसर होता है' पंक्ति को उद्धृत करते हुए अध्यक्षता कर रहे आलोचक प्रो अजय तिवारी ने कहा कि प्रेम बौद्धिकता की वस्तु नहीं हो सकता है. यह सही है, पर प्रेम में काव्य का प्रवाह मध्यकाल से छायावाद तक के साहित्यकारों में दिखता है. उन्होंने कहा कविता लिखने वाला अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ा होता है. जो रोज रोज की घटनाएँ हैं उसपर कवि चोट करता है. और यही कवि की सबसे बड़ी ताक़त है. कवि अपने आसपास को भी संवेदनशील बनाता है। कवि दूसरे के मर्म में प्रवेश करता है. जो समाज में होता है साहित्य उसका प्रतिबिम्ब है. स्‍वागत अरविंद कुमार तिवारी ने एवं भास्‍कर सिंह ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया. इस अवसर पर विजय शंकर, डा दर्शन पांडेय, डॉ गीता शर्मा पांडेय, डॉ विन्‍ध्‍याचल मिश्र, डॉ महेंद्र प्रजापतिडॉ राजेश शर्मा, राकेश रेणु, डॉ साधना अग्रवाल और अशोक महेश्‍वरी आदि मौजूद थे.