नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जब कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन जैसी स्थिति से गुजर रही है, तब हमारे समय के चर्चित कवि दिविक रमेश अपने समय का सदुपयोग सोशल मीडिया पर 'बैठे-बैठे' शीर्षक से एक सीरीज चलाकर अपने चित्रों व यादों को संजो रहे हैं. इसी क्रम में उन्होंने अपनी सृजनात्मक यात्रा के कई संस्मरण व चित्र भी लगाए हैं. उन्हीं के शब्दों का संपादित अंश कुछ यों है- मित्रो! मेरा पहला कविता संग्रह 'रास्ते के बीच' 1977 में पराग प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था जिसके मालिक श्रीकृष्ण गुप्ता थे जिनसे मेरे मित्र प्रेम जनमेजय ने मिलवाया था. इस संग्रह के लिए मेरी कविताओं का चयन कवि शमशेर बहादुर सिंह ने किया था. इसके दो संस्करण हुए. मेरा दूसरा कविता संग्रह 'खुली आंखों में आकाश' 1983 में प्रकाशित हुआ और इसके प्रकाशक भी पराग प्रकाशन ही थे. इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन कवि त्रिलोचन शास्त्री ने किया था. इसके तीन संस्करण पराग ने ही प्रकाशित किए. नवीनतम संस्करण 2017 में यश पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया.

मेरे दो कविता संग्रहों के समवेत संग्रह 'फूल तब भी खिला होता' में भी यह मौजूद है, जिसके प्रकाशक ग्रंथ के तन, नवीन शानदार, दिल्ली थे. सुखद ही नहीं बल्कि मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक अवसर यह रहा कि मेरे इन पहले ही दो कविता संग्रहों पर 984 में मेरी जिंदगी का पहला और अपने समय का बहुत ही प्रतिष्ठित एवं दुर्लभ पुरस्कार 'सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड' मिला. तब मेरी आयु 38 वर्ष थी. दोनों ही संग्रह बहुत चर्चित रहे और उन पर लिखा भी खूब गया. कवि केदारनाथ अग्रवाल ने तो 'रास्ते के बीच ' पर बहुत ही विस्तार से लिखा जो पहले अजमेर से निकलने वाली उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिका 'लहर' में छपा और बाद में केदारनाथ अग्रवाल की पुस्तक 'विवेक विवेचन' में प्रकाशित हुआ, पृष्ठ संख्या 69 से  पृष्ठ संख्या 97 तक कुल 28 पृष्ठ. पुरस्कार से संबद्ध कुछ चित्र आप लोगों की खिदमत में पेश कर रहा हूं. साथ ही संग्रहों के आवरण और शमशेर तथा त्रिलोचन की भूमिकाएं भी.