वाराणसी: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जन्मस्थली उदास है. स्थानीय हिंदीसेवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से हर साल मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती पर आयोजित होने वाले तीन दिवसीय लमही महोत्सव पर कोरोना का ग्रहण लग गया. न तो जिला प्रशासन का ध्यान उधर गया, न ही साहित्यकार, लेखक ही पहुंच सके. प्रेमचंद की जन्मस्थली लमही में सन्नाटा था. लमही महोत्सव की शुरुआत भी बड़ी मुश्किल से हुई थी. जिला प्रशासन की मदद से इसकी रंगत पिछले कुछ सालों में बढ़ी थी. स्कूली छात्रों से लेकर लेखकों का जलसा यहां लगता था. इस महोत्सव में नाट्यमंडली और कलाकार मुंशी प्रेमचंद लिखित उपन्यासों का मंचन कर एक संदेश देते थे. पर इस साल सब सूना रहा. लमही के निवासी और 2011 से लमही महोत्सव के आयोजक दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव से इस संबंध में बात नहीं हो सकी. याद रहे कि मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31, जुलाई 1880 को लमही में हुआ और उनका निधन 8 अक्टूबर, 1936 को वाराणसी में हुआ. कुछ साल पहले वाराणसी विकास प्राधिकरण ने उनकी इमारत की मरम्मत व रंगाई का काम किया था. मुंशी प्रेमचंद की याद में लमही के उनके पैतृक निवास में भव्य स्मारक बनाए जाने वाला मामला भी खास आगे नहीं पहुंचा. एक स्वागत द्वार है, मूर्ति है, मुंशी जी का घर है, पर वह चहलपहल, गतिविधि नदारद है, जो इतने बड़े लेखक के लिए होनी चाहिए.
हालांकि वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में प्रेमचंद का उल्लेख किए जाने के बाद से जिला प्रशासन ने मुंशी जी को लेकर साल दर साल थोड़ी गतिविधियां बढ़ाई थीं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा. “मुंशी प्रेमचंद की कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं. उनकी कहानियां समाज का वास्तविक चित्रण करती हैं और लगातार, सरल मानवीय भावनाओं को प्रकट करती हैं.” मोदी ने प्रेमचंद की 'नशा' कहानी का जिक्र करते हुए कहा था, “इसे पढ़ने पर मैंने अपने युवा दिनों को याद किया जब व्यापक गरीबी थी. यह हमें खराब संगति से सावधान रखने की सीख देती है. 'ईदगाह' ने भी मुझे गहराई तक छुआ है.”