जमशेदपुरः कोरोना संकट व हिंदी साहित्य को केंद्र में रखकर स्थानीय कोल्हान विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए वेबिनार में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रवक्ता डॉ कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि हमें समय को देखने का दृष्टिकोण बदलना चाहिए. कोरोना की भयलीला में मानवीय करुणा ज्यादा फलित हुई है. सड़कों पर चलने वालों को खाना या सहारा देने वाले लोग जाति धर्म पूछकर मदद नहीं कर रहे. वे उन्हें अपनी ही तरह का हाड़ मांस का इंसान मानकर उनकी पीड़ा हरने की सामर्थ्य भर कोशिश कर रहे हैं. हमारा ढेर सारा हिन्दी लेखन महामारी, अकाल, सूखा, बाढ़, युद्ध जैसी विकराल विपदाओं के समानांतर सृजन और उम्मीद की महान मानवीय घटनाओं का मार्मिक दस्तावेज है.
उन्होंने अल्बेयर कामू के उपन्यास 'प्लेग' के माध्यम से संकेत किया कि कभी-कभी रूप बदलते विषाणुओं की दंतकथाओं के बहाने बहुरूपिया फासिज़्म भी अपनी चाल चलता है. साहित्य निश्चय ही आने वाले दिनों में इसकी सही समझ सामने लाएगा. उन्होंने ऋणजल धनजल, वारेन हेस्टिंग्स का साँड़, सदी का सबसे बड़ा आदमी, बंशीधर की उत्तरकथा, परदा, फूलों का कुर्ता जैसी रचनाओं के माध्यम से संकटकाल में मानवीय करूणा के विराट उदाहरणों की चर्चा की. इस वेबिनार में दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ सपना चमड़िया, बीएचयू के डॉ प्रभाकर सिंह भी शामिल हुए. संयोजक के अनुसार प्रतिभागियों के शोधपत्र को ई -पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराने की कोशिश होगी.