तिरुवनंतपुरमः दक्षिण भारत विशेषकर केरल में हिंदी की अलख जगाने वाले अग्रणी हिंदी सेवी डॉ एन चंद्रशेखरन नायर का निधन हो गया. 27 जून, 1924 को कोलम में पैदा हुए एन चंद्रशेखरन नायर तिरुवनंतपुरम के एमजी कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष थे. आपने केरल हिंदी साहित्य अकादमी के संस्थापक के रूप में आखिरी समय तक राजभाषा के प्रति दक्षिण भारतीय लोगों में अलख जगाने की कोशिश की. उन्होंने बहुत सारी साहित्यिक रचनाएं भी लिखीं, जिनमें कविता, उपन्यास, नाटक और और अनुवाद शामिल हैं. नायर ने 'लोगों कुरुक्षेत्र जागता है' नामक कविता-संकलन; 'युगसंगम', 'देवयानी' नामक नाटक; 'हार की जीत', 'प्रोफसर और रसोइयाँ' नामक कहानी संग्रह; 'चिरञ्जीवि' नामक महाकाव्य और 'सीतम्मा' नामक उपन्यास से लेखन जगत में भी अपनी छाप छोड़ी.
डॉ नायर केरल हिंदी साहित्य अकादमी की शोध पत्रिका के संपादक थे. उनकी अन्य कृतियों में 'द्विवेणी', आत्मकथा, 'केरल के हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास', 'अध्यात्म रामायण' का मलयाळम गद्य अनुवाद, 'चित्रकला सम्राट राजा रविवर्मा' सहित हिंदी और मलयालम की कई पुस्तकें शामिल हैं. डॉ नायर को सौहार्द पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, विश्व हिंदी सम्मान आदि अनेकों पुरस्कार प्राप्त हुए. हिंदी प्रचार और साहित्यिक सेवाओं के लिए हाल ही में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. डॉ चंद्रशेखरन नायर के कार्यों पर आधारित शोध कार्य न सिर्फ केरल, बल्कि अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों में भी किए गए हैं. हिंदी के कई प्रतिष्ठित लेखकों के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता थी. उनके नेतृत्व में केरल हिंदी साहित्य अकादमी ने राज्य के शोधकर्ताओं और लेखकों के लिए पुरस्कारों की स्थापना की. मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन ने डॉ नायर के निधन को दक्षिण भारत में राजभाषा के एक महारथी का अवसान बताते हुए श्रद्धांजलि दी है.