नई दिल्ली: कवि केदारनाथ सिंह के कविताओं की स्व-संकलित आखिरी पांडुलिपि मतदान केंद्र पर झपकीके नाम से राजकमल प्रकाशन ने छापी है, जिसका लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत कवि की स्मृतियों को नमन करने से हुई. राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने अनेक मुलाकातों को याद करते हुए बताया कि किस तरह कविता-संग्रह की पहली कविता पर किताब का नाम रखा गया. उन्होंने इस संग्रह के लोकार्पण के अवसर पर केदारनाथ सिंह की अनुपस्थिति को अपूरणीय बताया. केदारनाथ सिंह के पुत्र सुनील कुमार सिंह ने जाड़े में उनकी कोलकाता चले जाने की आदत, एयरकंडीशनर से होने वाली कोफ़्त और सालाना गांव यात्राओं का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस तरह कवि ने अपनी दुनिया कुछ कागज़, कलम और एक छोटे से मोबाइल तक सीमित कर ली थी. सुनील कहना था कि पिताजी को अपनी कविता के लिए कच्चा माल गांव से ही मिला करता था.

 

लेखक-आलोचक आशुतोष कुमार जो कि जेएनयू में केदारनाथ सिंह के छात्र भी थे, ने कहा कि, "केदार जी कि कविताओं से उन्हें जीवन को देखने का एक नया कोण मिला है. रूपवाद, प्रतीकवाद, बिम्बवाद की बारीकियां केदार जी से ही सीखने को मिली हैं. उनकी कविता में बुनियादी फिक्र दिखलाई पड़ती है.कविता संग्रह की पहली कविता का ज़िक्र करते हुए उन्होंने असम में जारी हुई एनआरसीकी ओर ध्यान खींचा. इस संग्रह की अनेक कविताएं आखिरी सफर की ओर इशारा करती हैं. जैसे दुनिया से विदा लेते हुए कोई आखिरी प्रार्थना कर रहा हो. मगर कोई भी प्रार्थना किसी ईश्वर से नहीं हो रही है.लेखक एवं पत्रकार प्रियदर्शन ने कवि केदारनाथ सिंह की कविताओं में भोजपुरी के प्रयोग को अप्रतिम बताया. उन्होंने इलियट का हवाला देते हुए कहा कि एक बड़ी कविता को आप महसूस करते हैं.साहित्यकार उदय प्रकाश ने केदारनाथ सिंह से जुड़े अनेक निजी संस्मरण सुनाये. उन्होंने केदारनाथ सिंह कि कविता में विस्थापन के दर्दको अत्यंत मार्मिक बताया और कहा कि किस तरह से केदारनाथ सिंह शहरीकरण में मिसफिटथे.  

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने केदारनाथ सिंह को साधारण की महिमाका कवि कहा. उन्होंने याद दिलाया कि केदारनाथ सिंह कहते थे कि, “कविता का होना ही एक उम्मीद का होना है.” ‘मतदान केंद्र पर झपकीकविता-संग्रह पर उन्होंने कहा कि इस संग्रह की कविताओं में उत्तर-राग अवश्य है मगर विराग नहीं है. और इस संग्रह को रचते हुए कवि ने अद्भुत वाग्संयम का परिचय दिया है. उन्होंने हिंदी के दो कवियों, कुंवर नारायण और केदारनाथ सिंह को अजातशत्रु कहा. केदारनाथ सिंह की पुत्री संध्या सिंह ने पिता के कवि-कर्म को साझा करते हुए बताया कि किस तरह उन्होंने अपने बचपन में केदार जी को रातों में बोल-बोलकर कविता लिखते सुना था. संध्या ने मतदान केंद्र पर झपकीसे कुछ कविताएं भी पढ़ीं. कार्यक्रम का संचालन हिन्दू कॉलेज के अध्यापक पल्लव ने किया.