भोपालः हरियाणा के चर्चित लोकशैली पारखी कृष्णलाल के निर्देशन में स्वांग शैली में 'शकुंतला-दुष्यंत' का मंचन स्थानीय मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय सभागार में हुआ. कृष्णलाल कई वर्षों से रंग कर्म के क्षेत्र से जुड़े हैं और अपनी प्रस्तुतियों का निर्देशन करने के साथ ही साथ अभिनय के लिए भी जाने जाते हैं. इस नाट्य प्रस्तुति में शकुंतला-दुष्यंत के मिलन और भरत के जन्म की कथा को कलाकारों ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया. नाट्य की शुरुआत विश्वामित्र से होती है, जो तपस्या कर रहे हैं. विश्वामित्र की तपस्या को रोकने के लिए इंद्र मेनका को भेजते हैं. अंततः मेनका विश्वामित्र की तपस्या भंग कर देती है और मेनका विश्वामित्र के साथ रहने लगती है. विश्वामित्र और मेनका की एक पुत्री होती है, जिसका नाम शकुंतला है.
शकुंतला दुष्यंत से गन्धर्व विवाह करती है और विवाह के बाद दुष्यंत, शकुंतला को छोड़कर चला जाता है. लेकिन शकुंतला दुष्यंत की प्रतीक्षा करती है. इसी बीच उसे एक पुत्र होता है, जिसका नाम भरत है. एक दिन राजा दुष्यंत कहीं जा रहे होते हैं और उनकी मुलाकात भरत से हो जाती है. जब भरत दुष्यंत को अपने घर लेकर जाते हैं तब उन्हें याद आता है कि यह तो मेरा पुत्र और पत्नी है. अतः इसी नोट के साथ नाट्य शकुंतला-दुष्यंत का अंत होता है.इस नाट्य की समय सीमा लगभग 1 घंटा 30 मिनट रही. नाट्य प्रस्तुति के दौरान मंच पर कृष्णलाल, शरीफ अहमद, राकेश, दीपक, बंटी, राजू और मोनू आदि ने अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. प्रस्तुति के दौरान क्लेरनेट पर रमेश, हारमोनियम पर बलवीर, ढोलक पर सते और नक्कारा पर कर्मवीर ने सहयोग किया.