नई दिल्लीः श्री लाल शुक्ल की अमर-कृति रागदरबारी के पचास साल हो गए.  समय बदलता गया पर राग दरबारी का जलवा कम नहीं हुआ. उसके पात्र जीवंत हो हमारे आसपास ही घूमते लगते हैं, और व्यंग्य जैसे समाज की सच्चाई बन गया. हालांकि अपनी किताब 'राग दरबारी' के लिए समूचे हिंदी जगत ही नहीं दुनिया भर में पहचाना बनाने वाले श्री लाल शुक्ल ने 25 से अधिक किताबें लिखींमगर राग दरबारी के साथ उन्हें जो मुकाम मिला वह हिंदी साहित्य में कम ही लोगों को हासिल है. अपनी  पहली किताब 'अंगद का पांव' से चर्चित हो जाने वाले श्रीलाल शुक्ल ने 'राग दरबारी' जैसे व्यंग्य प्रधान उपन्यास से ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका शुक्ल जी ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती. पर कहते हैं कि खुद श्रीलाल शुक्ल इस किताब से खुश नहीं रहते थे. उनका कहना था कि राग दरबारी ने उनकी दूसरी रचनाओं को दबा दिया. उनका मानना था कि इस किताब के चलते उनकी 'मकान', 'विश्रामपुर का संत' और 'राग विराग' जैसी किताबों की चर्चा उतनी नहीं हुई जितनी राग दरबारी की हुई.

बहरहाल, राजकमल प्रकाशन समूह इस कालजयी कृति के पचासवें वर्ष के उपलक्ष्य में 26 अक्तूबर को सायं साढ़े 5 बजे से राजधानी दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्री सत्य साईं ऑडिटोरियम में 'कृति-उत्सव' कार्यक्रम आयोजित कर रहा है. इस कार्यक्रम में कई प्रख्यात पत्रकार, लेखक और विद्वान भाग ले रहें हैं. चर्चित पत्रकार जिलियन, पुष्पेश पंत, पुरुषोत्तम अग्रवाल, ज्यां द्रेज जहां विशिष्ट व्याख्यान देंगे, वहीं दास्तानगो के रूप में महमूद फारूकी और दारैन शाहिदी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे. इस अवसर पर 'दास्तान-ए-राग दरबारी' का खास मंचन भी रखा गया है.