नई दिल्लीः रज़ा फाउन्डेशन और इंडिया हैबिटाट सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में 'कुमार गंधर्व स्मृति व्याख्यान' श्रृंखला का पाँचवां व्याख्यान 'हिस्ट्री, मेमोरी एंड इमोशन इन अंडरस्टैंडिंग म्यूजिक एज़ पॉलिटिक्स' यानी 'राजनीति के रूप में संगीत को समझने में इतिहास, स्मृति और भावना' विषय पर हुआ, जिसमें चर्चित लेखिका एवं गायिका सुमंगला दामोदरन ने अपने विचार रखे. सुमंगला दामोदरन ने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के चित्त के उतराव चढ़ाव की गायकी कुमार गंधर्व की गायकी है. कुमार गंधर्व का संगीत, घराने की अवधारणा से अलग एक विशिष्ट संगीत है, जबकि यह घराने की परंपरा के साथ विकसित हुआ  संगीत है. शिक्षक के रूप में कुमार गंधर्व ने किराना और आगरा घराने के तरीके से अपने संगीत को फ़ैलाने का प्रयास किया. संगीत की महान विरासत और बड़े प्रतिमानों को छोड़कर उन्होंने परम्परा, शास्त्रीयता और लोक की बारीकियों को संगीत की बहस के केंद्र में ला दिया.
संगीत में प्रतिरोध के तत्वों को बताते हुए सुमंगला दामोदरन ने अमृता प्रीतम के हीर का उदाहरण दिया कि कैसे उसे बहुत से संगीतकारों ने भैरवी और अहीर भैरवी में गाया. उन्होंने बताया कि भारतीय संगीत परम्परा में संगीत अक्सर भैरवी या भैरव परिवार के रागों द्वारा विस्थापन, अलगाव, शरणार्थी समस्या, उत्पीडन और गहरी यादें (नास्टेल्जिया के संदर्भ में) और नास्तिकता को विभिन्न तरीकों एवं संयोजनों के माध्यम से रेखांकित करता है. सुमंगला ने संगीत में कोमल स्वरों के इस्तेमाल होने वाले स्वरों की राजनीति को रेखांकित करते हुए कहा कि जो आमतौर पर भिन्नता के साथ कोमल स्वरों का प्रयोग है वह संगीत के क्षेत्र में एक दिलचस्प मामला पेश करते हैं, भले ही वह जानबूझ कर राजनीति नहीं कर रहा हो लेकिन वह एक किस्म की राजनीति बन सकता है. इप्टा का संदर्भ देते हुए उन्होंने संगीत में शब्दों एवं बंदिशों के चयन के मामले को  संगीत के राजनीति का हिस्सा बताया. संगीत में स्वरों के उठान, गति, समझ इत्यादि सभी तत्वों को उन्होंने संगीत की राजनीति का साझेदार बताया.  उन्होंने संगीत की अभिजात्यता, परम्परा, लोकग्राह्यता, प्रमाणिकता इत्यादि के बारे में बात करते हुए संगीतकारों के दायित्व की बात की. उन्होंने कहा कि संगीत एवं प्रदर्शनकारी माध्यमों  का राजनीतिक रुपान्तरण इप्टा के रूप में हुआ.  इप्टा ने संगीत में एक राजनैतिक प्रतिपक्ष का निर्माण किया. सुमंगला दामोदरन ने अपने वक्तव्य को समटते हुए कहा कि मेरा मानना है कि हमें विस्तारित, रूपांतरित, क्रांतिकारी और राजनैतिक रूप से संगीत को समझने के लिए संगीत की एक अनिवार्य समझ की आवश्यकता है.
यह पाँचवां कुमार गन्धर्व स्मृति व्याख्यान था. कार्यक्रम की शुरुआत रज़ा फाउन्डेशन के प्रबंध न्यासी एवं हिंदी कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि वक्ता सुमंगला दामोदरन को गुलदस्ता भेंट कर के हुई. अशोक वाजपेयी ने कुमार गंधर्व का परिचय देते हुए उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का विशिष्ट और प्रमुख गायक बताया. इस अवसर पर अविनाश पशरीचा द्वारा कुमार गंधर्व के जीवन पर बनाए गए लघु वृत्तचित्र का प्रदर्शन भी किया गया.