नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने लोगों से अपनी मातृ भाषा को पढ़ने और उस में प्रवीणता हासिल करने का आग्रह किया है. उन्होंने लोगों से विभिन्न संस्कृतियों और उनके संस्कारों को जानने के लिए यथासंभव अन्य भाषाएं भी सीखने की सलाह दी.  नायडू का कहना था कि अन्य भाषाओं को सीखने से अखिल मानवता में एकता के सूत्र मजबूत होंगे तथा साथ ही अन्य प्रकार के अवसर भी प्राप्त होंगे. अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में आयोजित विश्व तेलुगु सांस्कृतिक समारोह के अवसर पर उपस्थित अतिथियों और प्रतिनिधियों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति नायडू का कहना था कि भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं है, बल्कि वह संस्कृति को भी अभिव्यक्ति देती है, उसके सनातन संस्कारों को व्यक्त करती है तथा हर संस्कृति की अपनी विशिष्टता को प्रतिबिंबित करती है. उन्होंने कहा हर भाषा सदियों से दूसरी भाषाओं के साथ संपर्क और संवाद के माध्यम से ही क्रमशः विकसित और समृद्ध होती जाती है. हर सभ्यता अपने नागरिकों की भाषा में, अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक और भौतिक संदर्भों में, स्वयं को अभिव्यक्त करती है. 

नायडू ने आगे कहा कि भाषा ही आपको आपकी पहचान से अवगत कराती है और हमारी इस मौलिक जिज्ञासा का समाधान करती है कि आखिर 'हम हैं कौन?', वो बताती है कि कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति और अपने संस्कारों की अभिव्यक्ति, उनका बिम्ब होता है. उन्होंने कहा कि समान भाषा एकता और साझे सामुदायिक विकास को सुनिश्चित करती है, अतः लोगों को विभिन्न संस्कृतियों के विषय में बेहतर जानकारी के लिए यथा संभव अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए. उन्होंने दृष्टिकोण के विकास और विचारधारा की सहिष्णुता के लिए सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों और संवाद को बढ़ाने पर जोर दिया.  नायडू ने लोगों से आग्रह किया कि वे अपने जीवन में सदैव, अंग्रेज़ी के चार 'एम'  के महत्त्व को समझें, उनका सम्मान करें, मदर यानी मां, मदरलैंड यानी मातृ भूमि, मदर टंग यानी मातृ भाषा और मेंटोर यानी गुरु. उपराष्ट्रपति का कहना था कि धर्म निजी मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन संस्कृति उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लोगों की जीवन शैली का मार्गदर्शन करती है. संस्कृति के मूलभूत तत्व के रूप में भाषा हमारे जीवन, हमारे चरित्र और विचारों को गढ़ती है. इसीलिए ऋषियों और आचार्यों ने भाषा की शुद्धता पर विशेष बल दिया है.