चंडीगढ़: किस्सागोई के अंदाज में हिमाचल के बड़े लेखक गणेश गनी ने अपनी अनूठी शैली में स्मृतियों की यात्रा के साथ-साथ देश के कई कवियों के रचना कर्म पर बात की है और उन कवियों की बेहतरीन कविताओं से पाठकों को रुबरु करवाया है. हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी, जो साल में तकरीबन 5 महीने बर्फ की आगोश में रहती है, से संबंध रखने वाले गणेश गनी ने इस किताब कविताओं को नया मुहावरा दिया है और दुनिया को यह बताया है कि हिमाचल में लिखी जा रही कविता किस तरह समकालीन कविता की मुख्यधारा के साथ कदमताल करते हुए नए प्रतिमान स्थापित कर रही है. गणेश गनी का काव्य संसार अचंभित भी करता है और स्तब्ध भी. झिंझोड़ता भी है और अपने साथ बहाकर भी ले जाता है. उनकी कविताओं और किस्सागोई के प्रवाह से गुजरते हुए कई अनूठे बिंब आकार लेते हैं और कविता को नया मुहावरा देते हैं.
लेखक गणेश गनी जब अपने पुराने शहर चंडीगढ़ आए, तो शहर का साहित्य जगत उनके स्वागत में और अनुभव को साझा करने के लिए जुट गया. यहीं पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए व एमबीए की डिग्री हासिल की. पंजाब विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन काल की यादों का पिटारा भी उन्होंने खोला और अपनी साहित्यिक शामें भी सबसे साझा की. चंडीगढ़ प्रेस क्लब में अक्सर विभिन्न साहित्यकारों की कृतियों के विमोचन होते रहते हैं, लेकिन पहली मर्तबा ऐसा हुआ कि इस किताब के बहाने नए दौर के कवियों और पहाड़ में लिखी जा रही कविता पर भी खासतौर पर चर्चा हुई. कहते हैं कि आखिर बिल्ली के पांव चलते -चलते क़िस्से चंडीगढ़ पहुंचे और प्रेस क्लब में इन किस्सों पर बकायदा चर्चा हुई. इस अवसर पर प्रेस क्लब चंडीगढ़ के महासचिव जसवंत राणा, पंजाब विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा.अशोक कुमार, साहित्य अनुरागी पत्रकार डा. राजकुमार मलिक, कवि व 'किससे चलते हैं बिल्ली के पांव पर' के लेखक गणेश गनी के अलावा लेखक अधिकारी गुरमीत बेदी भी मौजूद थे.