वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सितंबर के पहले हफ्ते में महिला महाविद्यालय में दो बहुत महत्त्वपूर्ण आयोजन हुए, जिसे अगर गुणी जनों की उपस्थिति, छात्रों-अध्यापकों की भागीदारी और खचाखच भरे सभागार के लिहाज से देखें तो एक इतिहास बन गया. एक आयोजन था कला इतिहास विभाग ममवि काशी हिंदू विश्वविद्यालय का जिसमें प्रसिद्ध जनजातीय कला विशेषज्ञ डॉ अरविंद घोषालकर, अहमदाबाद गुजरात ने जनजातीय कला के वैशिष्ट्य पर बहुत गंभीर और विस्तृत बात की. अपने संचयन से बहुमूल्य चित्रों को प्रदर्शित करते हुए उन्होंने सबसे जुड़े तथ्यों पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि भील आदि जनजातियों की कला में उनकी संस्कृति की गतिमानता और सौंदर्यबोध संचित है. अध्यक्षता करते हुए महिला महाविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पूर्व प्राचार्या प्रो मीना सोंधी ने डॉ घोसालकर के संचयन और श्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि जनजातीय कला में भारतीयता के रंग बचे हुए हैं और यह समझना बहुत सुखद है. उन्होंने इसके संरक्षण और संवर्धन को बिचौलियों से मुक्त करने की जरुरत पर बल दिया. कार्यक्रम का संचालन बीए तृतीय वर्ष की छात्रा रश्मि झा ने किया.
दूसरा कार्यक्रम शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ काशी नाथ सिंह द्वारा राजकमल प्रकाशन समूह के ममवि के हैरिटेज हॉल में लगी पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन रहा. उन्होंने इस मौके पर शोध विद्यार्थियों के नए उपक्रम सबद संवाद का भी उद्घाटन किया. काशीनाथ सिंह ने पुस्तक संस्कृति को जीने के लिए जरूरी बताते हुए कहा कि किताबें हमारी दृष्टि को व्यापक बनाती हैं. कभी हर घर में किताबों के लिए बहुत जगह थी, मगर अब कम हो रही है. यह संकट का लक्षण है. सबद संवाद के अन्तरविषयक स्वरुप की बेहद प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि आज इसकी बहुत जरूरत है. कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो अवधेश प्रधान ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में भारतीय समाज की तमाम जटिलताओं और स्वाधीनता आंदोलन का बड़ा परिप्रेक्ष्य लेकर कहा कि लिखे हुए शब्दों में कितना जादू होता है कितना संबल होता है यह उनके साथ हो कर ही जाना जा सकता है. बीए तृतीय वर्ष की अंजलि यादव और अदिति ने भी अपनी प्रिय किताबों के बारे में बताया.छात्राओं ने अपनी किताबों पर अपने प्रिय कथाकार के हस्ताक्षर भी लिए. कार्यक्रम का सुचिंतित संचालन किया प्रो सुमन जैन ने और डॉ मीताली देव ने आभार व्यक्त किया. यही नहीं इसके अगले दिन शिक्षक दिवस पर राजकमल प्रकाशन समूह और ममवि के संयुक्त कार्यक्रम में प्रो ऋचा कुमार का भारतीय गायन शैलियों के उत्स और वैविध्य पर व्याख्यान हुआ. प्रो ऋचा कुमार ने संक्षिप्त प्रस्तुतियों के साथ शास्त्रीय उपशास्त्रीय सुगम और लोक गायन के अंतर को बताया और कहा कि सभी गायन शैलियों का जन्म लोक से है. उनकी समानता और अंतर पर भी उन्होंने लोकप्रिय ढंग से प्रकाश डाला. इसी क्रम में प्रो ज्योत्सना श्रीवास्तव ने भारतीय दर्शन और काशी 'विषय पर व्याख्यान दिया. इन सभी कार्यक्रमों में महिला महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी की मौजूदगी और सहयोग उल्लेखनीय रहा. बड़ी संख्या में शिक्षक शिक्षिकाओं और छात्र छात्राओं ने भाग लिया और संचालन में मदद की.