वाराणसीः काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय के भारत कला भवन कलादीर्घा में प्रतिष्‍ठित कलाकार प्रो मंजुला चतुर्वेदी की एकल दृश्य चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन बीएचयू के वित्त अधिकारी डॉ. अभय ठाकुर ने किया. उन्होंने कहा कि हिमालय के सौंदर्य, उसकी विविधता, उसकी गोद में बसे गांव, बौद्ध मठ और उसके पूरे परिवेश को मंजुला चतुर्वेदी ने जिस संवेदना और संजीदगी के साथ अभिव्यक्त किया है, वह नायाब है. भारत कला भवन के निदेशक डॉ एके सिंह ने इन चित्रों को उदात्त प्रकृति की संवेदनशील अभिव्यक्ति बताया. मंजुला चतुर्वेदी ने अपने चित्रों के बारे में कहा कि मैं पिछले कई वर्षों से हिमालयीन क्षेत्रों में जाती रही हूं. हिमालय में होने का अनुभव स्वयं में प्रकृति की विराटता से साक्षात्कार है. इस विराटता की सहजता आप में रहस्यमयी है क्योंकि हम यांत्रिक जगत से हैं. मैंने जब भी सहज होने का प्रयास किया है तब मुझे लगा कि सहजता में दिव्य गुरुत्वाकर्षण है और इसके विभिन्न रंग भरे आयाम है. जानेमाने मूर्तिकार मदन लाल ने चित्रों की सराहना करते हुए उन्हें आगामी प्रदर्शनी हेतु आमंत्रित किया.

 इस प्रदर्शनी में कुल 47 नए दृश्य चित्र हैं, जो कैनवस पर एक्रेलिक रंगों में चित्रित किए गए हैं. डॉ मंजुला चतुर्वेदी ने बताया कि नीले हरे गुलाबी में मैजंटा आदि विविध रंगों में झील, नदी, बस्तियां, बौद्ध मठ अपने अर्थ की परतों को खोलते हैं. दर्शक प्रकृति के सानिध्य में विचरता हुआ वहां होने का एहसास करता है. किन्नौर, लाहौल-स्पीति, लद्दाख के दुर्गम क्षेत्रों की स्मृतियां यहां दर्ज हैं. स्पीति के ताबो, दंखर, जंस्कार के सुमदा चेनमो, पैगाग झील के विविध क्षेत्र अत्यंत आकर्षक है. मंजुला चतुर्वेदी ने जीवन के 41 वर्ष कला अध्यापन में व्यतीत किए हैं. उन्हें 1993 में इंडो जर्मन फैलोशिप, 1994 में  यूजीसी का कैरियर अवार्ड,  1999 में जर्मन डीएईडी फैलोशिप, 2001 तथा 2002 में जर्मनी की  कलाकार फैलोशिप प्राप्त हुई. विभिन्न सम्‍मानों से विभूषित मंजुला चतुर्वेदी को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उनके अकादमिक योगदान को देखते हुए 2016 के कला भूषण सम्मान से अलंकृत किया था. इस अवसर पर प्रो प्रदोष मिश्रा, मूर्तिकार प्रो विनोद सिंह, प्रो विजय सिंह, प्रो मृदुला सिन्हा, प्रो हीरालाल प्रजापति, डॉक्टर जसमिंदर, साहित्‍यकार डॉ नीरजा माधव, डॉ हिमांशु उपाध्याय, डॉ ओम धीरज, जितेंद्रनाथ मिश्र, डॉ दयानंद, प्रो दया एस त्रिपाठी, काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति प्रो पी नाग, प्रो कल्पलता पांडे, महेंद्र सिंह नीलम आदि उपस्थित थे.