पटना, 29 अप्रैल। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन महापंडित राहुल सांकृत्यायन को समर्पित था। पहले सत्र का विषय ” भारतीय समाज और राहुल सांकृत्यायन “। सबसे पहले राहुल सांकृत्यायन की बेटी जया सांकृत्यायन की ने बताया ” मैं 10 साल की थी जब मेरे पिता की मृत्यु हुई। बिहार उनकी कर्मभूमि थी। यही छपरा के परसा मठ में वे केदार पांडे बने। फिर आर्यसमाजी हुए, वहां से बौद्ध व अंत में मार्क्सवादी हुए। बिहार के के.पी जायसवाल से बहुत जुड़े थे। ऐसे ही वे क्रांतिकारी किसान नेता स्वामी सहजानांद सरस्वती से प्रभावित थे। तिब्बत से बाइस खच्चरों पर लादकर जो अमूल्य सामग्रियां ले आये उसे पटना संग्रहालय में रखा गया है। ”
पटना विश्विद्यालय में हिंदी के प्रोफ़ेसर तरुण कुमार ने राहुल सांकृत्यायन के व्यक्तित्व पर रैशनी डालते हुए कहा ” जब व राहुल जी बनारस में निराला से मिलने के लिए दिन भर बिना अन्न खाये इंतज़ार करते रहे। निराला जैसे विद्वान का क्या महत्व है ये राहुल जी समझते थे जबकि उम्र में वे निराला से बड़े थे। बुद्ध ने आनंद से वैशाली के गणतंत्र के विषय में सात सवाल पूछे उसका उत्तर आनंद ने हैं में दिया था। वो सवाल थे कि स्त्रियों व दलितों व बुजर्गों का ख्याल रखा जाता है या नहीं। राहुल जी ने ये भी कहा राजनीतिक रूप से क्रांतिकारी होना, फांसी पर चढ़ना अधिक आसना है सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाने से। समाझ की निगाहों को झेलने के”।
बनारस हिंदू विश्विद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक आशीष त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा ” पिछले सौ -डेढ़ वर्षों में धर्मरूप उभर कर आये हैं असली धर्म गायब है। इस सत्र के अन्य वक्ता थे राजेन्द्र शर्मा और राकेश वानखेड़े थे। संचालन किया परमाणु कुमार ने किया।
दूसरा सत्र
रवींद्र विश्विद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने कहा ” राहुल जी के अंतिम 14 वर्ष सबसे कष्टपूर्ण रहे। ये वो समय है जब भारत गुलाम नहीं था। आखिर पचास के दशक में देश की राजनीति में क्या घटित हुआ है कि हिंदी का इतना बड़ा लेखक अकेले क्यों हो जाता है? ये बहुत दुखद है कि वे चीन जाकर वहां के नेता माओ से मिलना चाहते थे लेकिन हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक ने सहयोग नहीं दिया। हमें उनकी किताब ‘ वोल्गा से गंगा‘ के साथ साथ ” आज की राजनीति” को भी पढ़ने की आवश्यकता है। प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने कहा ” जब हम राहुल की बात करें तो हमें उनके समय और संदर्भो से जुड़ कर बात करना हाहिये। इस सत्र के अन्य वक्ताओं में थे मध्यप्रदेश शैलेन्द्र शैली, मुजफ्फरपुर की पूनम सिंह और भारतीय मैत्री व सांस्कृतिक सहयोग के महासचिव विजय पढीहारी आदि। इस सत्र का संचालन गजेंद्रकांत शर्मा ने किया।
तीसरा सत्र
तीसरे सत्र का विषय था ”राहुल सांकृत्यायन :भाषा , साहित्य और समाज”। मुख्य वक्ता के रूप में नरेश सक्सेना ने अपने संबोधन में कहा “राहुल सांकृत्यायन की भाषा की जो नफ़ासत पर हम मिट्टी डाल रहे हैं। जो आदमी प्यूरी ज़िंदगी हिंदी के लिए प्रतिबद्ध रहा वही हिंदी समाज अपने बच्चों को अंग्रेज़ी पढा रहे हैं। हम कभी अपने बच्चों को अच्छी अंग्रेज़ी नहीं सिखा पाएंगे। हमें दुनिया को कैसे बदलें इसके लिए जोखिम लेने, खतरा उठाने की कोशिश करनी होगी।” रमेश ऋतंभर ने अपने संबोधन में कहा ” जहां कोई संघर्ष कर दिया जला रहा है वहां वहां हम दिखेंगे साथी । यदि करुणा से ओतप्रोत हैं, समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं। उनको छोटे छोटे अहंकार व कद, जाति-धर्म का अहम तोड़कर आगे बढ़ना होगा।जो राहुल ने किया, नागार्जुन ने किया, वर्गच्युत व जातिच्युत होना होगा। पंजाब से आये सरबजीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा ” सबसे अच्छी तरह हम सीखने का काम अपनी भाषा में ही करते हैं। “
इस सत्र के अन्य वक्ता थे छत्तीसगढ़ के नथमल शर्मा, अरविंद प्रसाद हरिश्चंद्र शर्मा विनीत तिवारी थे।संचालन रंगकर्मी जयप्रकाश ने किया। समापन वक्तव्य प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज कुमार पांडे ने दिया।
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