फिर मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी के प्रवक्ता हो गए, किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा रोमांस का आरोप लगाये जाने से कुपित होकर नौकरी छोड़ दी और अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक बन गए. कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई, तब बम्बई के फिल्म जगत ने ‘नई उमर की नई फसल‘ के गीत लिखने का बुलावा दिया. पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत, जैसे- ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे…‘ और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा…‘ बेहद लोकप्रिय हुए. इसके बाद उन्होंने मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में ‘ए भाई जरा देख कर चलो’, ‘कहता है जोकर सारा ज़माना’, ‘शोखियों में घोला जाए ..‘ जैसे यादगार गीत रचे. कहते हैं, ‘लिखे जो खत तुझे , जो तेरी याद में…‘ गीत उन्होंने केवल छह मिनट में लिखा था.
नीरज को फिल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए 70 के दशक में लगातार तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. ये गीत थे- ‘काल का पहिया घूमे रे भइया! (फिल्म: चन्दा और बिजली-1970), ‘ बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फिल्म: पहचान-1971) और ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ (फिल्म: मेरा नाम जोकर-1972). बावजूद इसके मुंबई से उनका जी बहुत जल्द उचट गया और उन्होंने फिल्म नगरी को अलविदा कह दिया. वह पहले ऐसे व्यक्ति रहे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने अपने दो बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से. कवि नीरज को जागरण हिंदी की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि!