नई दिल्लीः प्रख्यात रंगकर्मी, निर्देशक, पटकथाकार एवं उत्कृष्ट अभिनेता गिरीश कारनाड के निधन पर साहित्य अकादमी ने गहरा दुख व्यक्त किया है. साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव ने अपने शोक संदेश में कहा- गिरीश कारनाड के प्रति साहित्य अकादेमी की विनम्र श्रद्धांजलि. कन्नड भाषा के प्रसिद्ध लेखक, लोकप्रिय अभिनेता, चर्चित फिल्म निर्देशक और रंग-व्यक्तित्व गिरीश कर्नाड का सोमवार को 81 साल की उम्र में बेंगलुरु में निधन हो गया. 19 मई 1938 में माथेरान, महाराष्ट्र के एक कोंकणी भाषी परिवार जन्मे गिरीश कर्नाड को कन्नड और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में समान अधिकार प्राप्त था. उन्होंने धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली. इसके पश्चात् वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. गिरीश कारनाड शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट महाविद्यालय में विजिटिंग प्रोफे़सर भी रहे. कारनाड की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में अधिक रही है. कन्नड भाषा में लिखे उनके नाटकों का अंग्रेज़ी समेत कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है. कारनाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा उनका लेखन काफी लोकप्रिय हुए. उनके नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुगलक (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं. तुगलक से कारनाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ. गिरीश कारनाड के चर्चित नाटकों में यताति, तुगलक, हयवदन, अंजु मल्लिगे, अग्निमतु माले, नागमंडल और अग्नि और बरखा, मा निषाद, हित्तिन हुंज, टिप्पुविन कनसुगळु आदि शामिल हैं. उनकी नाट्य कृतियों ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की. उनके लिखे नाटकों का देश और विदेश के अनेक प्रतिष्ठित रंग-निर्देशकों ने निर्देशन किया और विश्व स्तर पर उनके नाटकों का मंचन हुआ.
गिरीश कारनाड ने 1970 में कन्नड फिल्म संस्कार से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया. उनकी पहली ही फिल्म को कन्नड सिनेमा के लिए राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला. उनकी आख़िरी फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी अपना देश थी, जो 26 अगस्त को रिलीज हुई. बॉलीवुड की उनकी अंतिम फिल्म टाइगर जिंदा है (2017) में डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था. उनकी चर्चित कन्नड़ फिल्मों में तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी, कादु और कन्नुड़ हेगादिती रही हैं. हिंदी में उन्होंने अनेक फिल्मों में यादगार अभिनय किया है. गिरीश कर्नाड को वर्ष 1994 में तले-दंड नाट्य कृति के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया. गिरीश कारनाड को कई अन्य महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं – वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान, कन्नड फिल्म संस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार, फिल्म फेयर अवार्ड आदि. वे फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे के निदेशक एवं संगीत नाटक अकादेमी के अध्यक्ष भी रहे. साहित्य अकादेमी को गिरीश कारनाड का सहयोग प्राप्त होता रहता था. उनके निधन से भारतीय साहित्य, संस्कृति और रंग-जगत् को बड़ी क्षति हुई है. उनके देहावसान से जो अवकाश निर्मित हुआ है उसे भरा नहीं जा सकता. साहित्य-जगत् और साहित्य अकादेमी की ओर से गिरीश कर्नाड के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि!