नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने 'कहे हुसैन फकीर साईं दा: शाह हुसैन' नामक एक परिसंवाद का आयोजन राजधानी के रवींद्र भवन स्थित सभागार में किया. कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि भारत सूफ़ी संतों और भक्त कवियों की भूमि है. अकादमी को महान सूफ़ी संत दरवेश शाह हुसैन पर केंद्रित यह परिसंवाद आयोजित करने पर संतोष का अनुभव हो रहा है क्योंकि जब पूरी दुनिया नफ़रत, आतंक और अतिभौतिकतावाद से ग्रस्त है, तब दरवेश शाह हुसैन जैसे सूफ़ी संतों की वाणियां ही हमें प्रेम, सद्भाव और संतोष के रास्ते पर ला सकती हैं. उन्होंने कहा कि शाह हुसैन अकबर और जहाँगीर के समकालीन थे. शाह हुसैन के गुरु अर्जुनदेव जी और छज्जू भक्त के साथ बहुत अच्छे संबंध थे. पंजाबी में एक विशेष काव्य-प्रकार है – 'काफी'. शाह हुसैन को इसकी शुरुआत करने वाला भी माना जाता है. साहित्य अकादेमी के पंजाबी परामर्श मंडल की संयोजक तथा प्रख्यात कवयित्री वनिता ने अपने आरंभिक वक्तव्य में शाह हुसैन की पंजाबी साहित्य में अद्वितीय स्थिति का परिचय दिया.

शाह हुसैन के आध्यात्मिक व्यक्तित्व और उनकी सामाजिक व्याप्ति पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध पंजाबी विद्वान सुखदेव सिंह सिरसा ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि शाह हुसैन ने मनुष्य और परमात्मा के बीच एक ऐसा रागात्मक संबंध स्थापित करने में बड़ी भूमिका अदा की जिसके माध्यम से व्यक्ति के भीतर विराट मानवता पैदा होती है. शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति हरमोहिंदर सिंह बेदी ने उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य दिए. कश्मीरी साहित्यकार अज़ीज़ हाजिनी ने 'रांझा मिले कित्त धांगे' विषयक सत्र की अध्यक्षता की. हरभजन सिंह भाटिया ने 'शाह हुसैन दा कलाम: अनुभव अते अंदाज़', मुस्ताक़ क़ादरी ने 'तसव्वुफ़ शाह हुसैन', तथा रवेल सिंह ने 'बिरहा अते शाह हुसैन' विषय पर अपने गंभीर आलेख प्रस्तुत किए. 'दर्द विछोडे़ दा हाल' सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात पंजाबी साहित्यकार सुमेल सिंह सिद्धू ने की. इस सत्र में 'माई नी मैं केहनू आँखाँ' विषय पर पंजाबी युवा कवि जगविंदर जोधा ने आलेख प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी की अंग्रेज़ी संपादक स्नेहा चौधुरी ने किया.