गाजियाबादः हास्य व्यंग्य के मूर्धन्य कवि अल्हड़ बीकानेरी की जयंती पर आओ गुनगुना लें मंच के तत्वावधान में 'बेटी बचाओ' कवि सम्मेलन समर्पित किया गया. इसकी अध्यक्षता छंद शिल्पी बृजेन्द्र हर्ष ने की. मुख्य अतिथि जाने-माने हास्य व्यंग्य कवि हलचल हरियाणवी रेवाड़ी थे. सान्निध्य अनुपिन्दर सिंह अनूप का था. विशिष्ट अतिथि पवन कुमार पवन थे. स्वागत डॉ जयसिंह आर्य ने किया और संचालन संजय जैन ने किया. पूनम रजा की सरस्वती वंदना से कवि सम्मेलन का आरंभ हुआ. तत्पश्चात सुनील तम्मी ने अपने दोहों से सभी को झुमा दिया. प्रीतम सिंह प्रीतम ने बेटियों को मान देने का आह्वान किया. हलचल हरियाणवी ने अल्हड़ बीकानेरी के कृतित्व, व्यक्तित्व पर रचना पढ़ी, 'हास्य व्यंग्य का गीत गाकर वह चल दिया, हंसते-हंसते हंसा कर वह चल दिया. अक्ल का पुतला था अछूता अल्हड़ था. छंद के बंद में चाक-चौबंद था. किसी गुट में नहीं था निर्गुण आनंद था. फन कलम का दिखा करके वह चल दिया.'
इस सम्मेलन में बृजेन्द्र हर्ष ने बेटी पर कविता पढ़ी, 'बेटों की भांति कर लो स्वीकार बेटियों को. जितना भी दे सको दो सब प्यार बेटियों को. ये प्यार बांटती हैं होती है सुख का सागर, हर घर में मिले पूरा अधिकार बेटियों को.' गीतकार पवन कुमार पवन ने बेटी के अंतःकरण की पीड़ा का मार्मिक चित्रण किया, 'जैसे तैसे बचकर जब दुनिया में आई थी. मातम छाया घर में ना ढोल ना शहनाई थी.' शायर अनुपिन्दर सिंह अनूप ने पढ़ा, 'आंख दुनिया से मिलाकर उड़ जरा. जोर अपना आजमाकर उड़ जरा. बोझ अपने से ना घबरा तू कभी, बोझा सारा ही उठाकर उड़ जरा.' गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने खूब वाहवाही लूटी, 'जब भी बेटी जहां में आती है, अपने आंगन में खिलखिलाती है, आज बेटों का है भरोसा क्या, दुख में बेटी ही काम आती है.' संचालक संजय जैन का कहना था, 'गर्भ में तो कभी मारना मत इन्हें, वंश मिट जाएगा देखिए तो जरा.' बेटियों पर चन्द्र शेखर मयूर, रामनिवास ज़ख़्मी, संध्या सरल, सूरज सिंह, रेखा पूनिया स्नेहिल, डॉ पंकज वार्षीनी, विनयप्रताप सिंह आदि ने भी कविता पढ़ी
इस सम्मेलन में बृजेन्द्र हर्ष ने बेटी पर कविता पढ़ी, 'बेटों की भांति कर लो स्वीकार बेटियों को. जितना भी दे सको दो सब प्यार बेटियों को. ये प्यार बांटती हैं होती है सुख का सागर, हर घर में मिले पूरा अधिकार बेटियों को.' गीतकार पवन कुमार पवन ने बेटी के अंतःकरण की पीड़ा का मार्मिक चित्रण किया, 'जैसे तैसे बचकर जब दुनिया में आई थी. मातम छाया घर में ना ढोल ना शहनाई थी.' शायर अनुपिन्दर सिंह अनूप ने पढ़ा, 'आंख दुनिया से मिलाकर उड़ जरा. जोर अपना आजमाकर उड़ जरा. बोझ अपने से ना घबरा तू कभी, बोझा सारा ही उठाकर उड़ जरा.' गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने खूब वाहवाही लूटी, 'जब भी बेटी जहां में आती है, अपने आंगन में खिलखिलाती है, आज बेटों का है भरोसा क्या, दुख में बेटी ही काम आती है.' संचालक संजय जैन का कहना था, 'गर्भ में तो कभी मारना मत इन्हें, वंश मिट जाएगा देखिए तो जरा.' बेटियों पर चन्द्र शेखर मयूर, रामनिवास ज़ख़्मी, संध्या सरल, सूरज सिंह, रेखा पूनिया स्नेहिल, डॉ पंकज वार्षीनी, विनयप्रताप सिंह आदि ने भी कविता पढ़ी