वाराणसीः हिंदी के अप्रतिम कवि-कथाकार, निबंधकार एवं 'वंशी और मादल' के रचयिता ठाकुर प्रसाद सिंह को पिछले दिनों सोशल मीडिया पर याद किया गया. मृत्युंजय राय ने उन पर एक विचार संगोष्ठी का आयोजन गूगल मीट पर किया गया, जिसमें लखनऊ से बंधु कुशावर्ती एवं शिवांगी मिश्र, देहरादून से बुद्धिनाथ मिश्र, दिल्ली से डॉ ओम निश्चल, वाराणसी से डॉ उमेश प्रसाद सिंह, राज नारायण सिंह, शैलेंद्र कुमार सिंह, स्तुति राय ने हिस्सा लिया. याद रहे कि ठाकुर प्रसाद सिंह का जन्म 1 दिसंबर, 1924 को आजमगढ़ में हुआ था. उन्होंने काहिविवि से इतिहास एवं पुरातत्व में एमए किया और देवघर विद्यापीठ के प्राचार्य रहे. उसके बाद वे उत्तर प्रदेश में सूचना एवं जन संपर्क विभाग से जुड़े एवं वहां 1981 में निदेशक बने. उल्लेखनीय है कि ठाकुर प्रसाद सिंह के प्रयासों से ही उत्तर प्रदेश में हिंदी समिति को हिंदी संस्थान के रूप में परिणत किया गया. वे कवि-कथाकार निबंधकार एवं मंच के बेहतरीन संचालकों में थे. सुपरिचित बाल साहित्यकार एवं साहित्य साधक बंधु कुशावर्ती ने 1972 से लेकर 1981 तक के कार्यकाल में ठाकुर प्रसाद सिंह से अपनी नजदीकियों का जिक्र किया तथा बताया कि कैसे तमाम विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने हिंदी समिति का गठन कराया और बाद में हिंदी संस्थान की नींव रखने में सरकार की मदद की. साहित्यकारों का मजमा उनके कक्ष में लगा रहता था तथा कोई भी लेखक यदि लखनऊ आता था तो उनसे बिना मिले नहीं जाता था. अपने पद पर रहते हुए उन्होंने तमाम गोष्ठियों का आयोजन किया तथा कविता, कहानी, निबंध इत्यादि विधाओं में सतत लेखन भी किया.
जाने माने कवि गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने ठाकुर प्रसाद सिंह से जुड़े देवघर बिहार के अनेक संस्मरण सुनाए तथा लखनऊ में हुई अनेक मुलाकातों को याद किया. सिंह का स्मरण करते हुए डॉ ओम निश्चल ने उनके साहित्यिक व्यक्तित्व की बारीकियों की चर्चा की कि कैसे वे युवाओं के बीच लोकप्रिय थे तथा जहां भी रहते थे साहित्य को उत्सव की तरह जीने वाले इनसान थे. उन्होंने बताया कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की पत्रिका उत्तर प्रदेश की शुरुआत उन्होंने ही की जिसमें उस दौर के सभी प्रमुख साहित्यकार छपते थे. 'वंशी और मादल' से वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कवि बने और बाद में उनके अन्य कई संग्रह प्रकाशित हुए. आदिवासियों के जन जीवन से जुड़े उनकी रचनाओं में 'वंशी और मादल' के अलावा उपन्यास 'सात घरों का गांव' भी आता है. 'आदिम' उपन्यास इन सबमें एक साफ सुथरी प्रेमकथा का सा आस्वाद देता है, तो 'महामानव' नामक प्रबंध काव्य के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर उनके सीरीजबद्ध काम को ऐतिहासिक गरिमा प्राप्त है. शैलेंद्र कुमार सिंह ने ठाकुर प्रसाद सिंह पर आयोजित गोष्ठी में सहभागी विद्वानों के प्रति आभार ज्ञापित किया. मृत्युंजय राय ने कहा कि ठाकुर प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गोष्ठी की यह श्रृंखला चलती रहेगी जिससे कि इस विस्मृत साहित्यकार के कृतित्व को जनता के समक्ष प्रचारित प्रसारित किया जा सके. ढाई घंटे तक चली इस गोष्ठी का संचालन शिवांगी मिश्र ने किया.