पटना: "कविता नियोजित करके नहीं लिखा जा सकता है।" ये बातें मैथिली के युवा साहित्यकार नारायण झा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। इस कार्यक्रम में हर दो महीने में बिहार की लोकभाषाओं -मैथिली (मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूति में भाषा का दर्जा है), भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका- पर केंद्रित होता है। नारायण झा को साहित्य अकादमी के युवा लेखन का सम्मान प्राप्त हो चुका है। उनसे बातचीत करने के लिए मैथिली के युवा लेखक प्रणव नार्मदेय मौजूद थे।
लेखन वृति में आने के प्रश्न पर नारायण झा ने कहा कि "स्नातक करने के उपरांत अखबार में लेखन की शुरुआत "पाठकनामा" से की। "
मैथिली में लेखन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विनय मोहन जगदीश के प्रेरणा से लेखन की शुरुआत की।
अपने लेखन में कविता रचना पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि "बचपन में विद्यालय में कविता पाठ होता था जिससे कि मस्तिष्क पर उसका प्रभाव बना रहता था जिसके कारण कविता लिखना शुरू किया। कविता लेखन की धारणा पर उन्होंने कहा कि समाज, देश , प्रकृति में जो समस्याएं होती है वही कविताओं को जन्म देती है। "
उन्होंने अपनी पहली कविता "शिक्षक प्रशिक्षण" नामक शीर्षक से लिखी। पहली कविता जो मुद्रित हुई वो "रविन्द्र नाथ ठाकुर" थी। अपनी कविता शिल्प पर बात करते हुए उन्होंने कहा " मैंने तुकबन्दी से शुरुआत की किंतु अब छंदमुक्त में सहजता अनुभव करता हूँ। अपने कविता पर पहले के पीढ़ी के प्रभाव पर बात करते हुए कहा कि बाबा नागार्जुन, प्रणव मिश्र, राजकमल, हरेकृष्ण झा से प्रेरणा मिलती है। कविता में व्याकरण , मनोरंजन एवं विचारधारा पर उन्होंने कहा कि कविता अब मनोरंजन की वस्तु नहीं रही है। कविता में विचारधारा को लाना काव्य को संकुचित करने के जैसा है। "
सोमदेव के सहजतावाद के बाद सहज भाव से कविता लिखा जाने लगा।समकालीन कविता में नवयुवक की कविता पर उन्होंने कहा कि कविता अब ज्यादा संजीदा और प्रभावी लिखी जा रही है। लेखक नारायण झा ने टिप्पणी करते हुए कहा " एक शिक्षक होने के नाते में बच्चों की पढ़ाई भी मातृभाषा में करवाता हूँ और चाहता हूं कि हर शिक्षक ऐसा ही करें। " आगे उन्होंने अपने कार्य योजना पर बात करते हुए कहा कि" विश्व साहित्य के अनुवाद पर काम किया जाएगा तथा लेख, निबन्ध इत्यादि विधाओं में काम करना है।"
दोनों युवाओं की बातचीत बेहद दिलचस्प रही। कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई। इसके बाद श्रोताओं ने भी सवाल पूछे। कार्यक्रम के अंत में मसि की संस्थापक आराधना प्रधान ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस कार्यक्रम में पद्मश्री उषाकिरण खान, धीरेंद्र कुमार झा, कथाकार अशोक, उमेश मिश्र, अन्विता प्रधान, वीरेंद्र झा, प्रेमलता मिश्र ' प्रेम', रामानंद झा रमण, अनीश अंकुर, शाहनवाज खान , मृणाल मोहन मिश्र, सत्यम कुमार झा, वैद्यनाथ मिश्र, आदि लोग उपस्थित थे।
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