नई दिल्लीः इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन युनिवर्सिटी 'इग्नू' के हिंदी संकाय, मानविकी विद्यापीठ के शोधार्थियों के रचनात्मक उपक्रम शोध-समवाय द्वारा अतिथि व्याख्यान सह काव्यपाठ का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवि मदन कश्यप थे. उन्होंने 'कविता की नई सदी' विषय पर एक व्याख्यान दिया और कविता-पाठ किया. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि समकालीनता में सबकुछ समकालीन नहीं है, जो आज लिखा जा रहा है. समकालीन कविता वह है जो आज के समय में सार्थक हस्तक्षेप करने में सफल है, अर्थात् जो समय की जटिलता, विडम्बना और आंतरिक गतिशीलता को रेखांकित करने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि 1990 और उसके बाद की कविता को सबसे अधिक पहचान और ताकत अस्मिता विमर्शों से मिली. कविता की नई सदी ने लोक का समयानुकूल सृजनात्मक उपयोग किया. लोक चेतना को इससे पहले अहा ग्राम्य जीवन के रूप में ही देखा गया है, लेकिन इस समय के कवियों ने लोक में नियामक शक्ति के रूप में स्त्री को ले आते हैं. इसका मुकम्मल उदाहरण कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव की 'सोन चिरई' और श्रीप्रकाश शुक्ल की 'हड़परौली' शीर्षक कविता है.
वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने यह भी दावा किया कि कविता की नई सदी में सहअस्तित्व की स्वीकृति बढ़ी है. यह वर्चस्ववादी प्रवृतियों के विरुद्ध है. इसमें विकेंद्रीकरण और स्थानीय ज्ञान को महत्त्व मिला है. इसमें ज्ञान और सत्ता के बीच के अंतर्विरोधों को बढ़ाने की कोशिशें तेज़ हुई हैं और प्रतिरोध की परंपरा मजबूत हुई है. बहुलता के पक्ष में आवाज़ें बुलंद हुई हैं. असमानता और भिन्नता के फ़र्क़ को समझा गया है. नये कवियों ने अनुभवमूलक अन्वेषण को महत्त्व दिया है और ज्ञानात्मकता और तार्किकता के अंतर को भी समझा है. इस युग की कविता में अस्मिता विमर्शों को अलग से पहचानने की बजाय, उन्हें मुख्यधारा में जगह दी गयी है. इस अवसर पर व्याख्यान के बाद मुख्यवक्ता से शोधर्थियों ने समकालीन कविता से सम्बंधित अपनी जिज्ञासायें साझा कीं. इसके बाद उन्होंने अपने सद्यःप्रकाशित काव्य संग्रह 'पनसोखा है इन्द्रधनुष', 'लेकिन उदास है पृथ्वी' एवं 'दूर तक चुप्पी' से कविताओं का पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ शोधार्थी भावना सरोहा, स्वागत सविता, अतिथि स्वागत रजनी चावला, अतिथि परिचय पवन कुमार और धन्यवाद ज्ञापन राकी गर्ग ने किया. इस अवसर पर प्रोफेसर जितेन्द्र श्रीवास्तव सहित इग्नू के हिंदी संकाय के सभी आचार्य और शोधार्थी मौजूद रहे.