नई दिल्लीः पंद्रह अगस्त यानी जश्ने आजादी का दिन. हिंदी साहित्य में इस दिन पर गजल, कविता, कहानियां और फिल्मी गीतों की भरमार है. जागरण हिंदी अपने सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं के साथ ही हमारे समय के दो चर्चित हस्ताक्षर गिरिजा कुमार माथुर और प्रधानमंत्री रह चुके कवि अटल बिहारी की पंद्रह अगस्त पर लिखी कविताएं यहां प्रस्तुत कर रहा.

 

पंद्रह अगस्त की पुकार

पंद्रह अगस्त का दिन कहता-
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।

जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई।।

कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं।।

हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहां कुचली जाती।।

इंसान जहां बेचा जाता,
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियां भरता है,
डालर मन में मुस्काता है।।

भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं।।

लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया।।

बस इसीलिए तो कहता हूं
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊं मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है।।

दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएंगे।।

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं,
जो खोया उसका ध्यान करें।।
अटल बिहारी वाजपेयी, मेरी इक्यावन कविताएं से साभार)

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पन्‍द्रह अगस्‍त

(गिरिजाकुमार माथुर)


आज जीत की रात
पहरुए सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना

प्रथम चरण है नए स्‍वर्ग का
है मंजि़ल का छोर
इस जन-मन्‍थन से उठ आई
पहली रत्‍न हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्‍ता डोर
क्‍योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत सांवली कोर

ले युग की पतवार
बने अम्‍बुधि महान रहना
पहरुएसावधान रहना!

विषम श्रृंखलाएं टूटी हैं
खुली समस्‍त दिशाएं
आज प्रभंजन बन कर चलतीं
युग बन्दिनी हवाएं
प्रश्‍नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएं
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएं

उठता है तूफान इन्‍दु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुएसावधान रहना !  

ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गयालेकिन
उसकी छायाओं का डर है
शोषण से मृत है समाज
कमजोर हमारा घर है
किन्‍तु आ रही नई जि़न्‍दगी
यह विश्‍वास अमर है

जन गंगा में ज्‍वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुएसावधान रहना!