प्रयागराजः इलाहाबाद संग्रहालय में 'कला अभिरुचि कार्यक्रम' के तहत आधुनिक कला पर ख्यात कलामर्मज्ञ ज्योतिष जोशी का व्याख्यान हुआ. उन्होंने साल 1516 के बाद के पश्चिमी कला परिदृश्य पर नव शास्त्रवाद, रोकोको शैली, स्वछंदतावाद, यथार्थवाद और बारबिजां शैली के आंदोलन के बाद आए प्रभाववाद के साथ आधुनिकतावाद और आगे के विभिन्न आंदोलनों को भारतीय कला आंदोलनों के  आईने में परखते हुए अपनी बात कही. यूरोप में आई औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप परिवर्तनों और फ़्रांसिसी दरबारी कला के विरोध में जन्मे विभिन्न कला विचारों की व्याप्ति के अहम सूत्रों पर बात की. जोशी ने शास्त्रशुद्ध कला के पुसं, जॉर्ज ला लातूर, लोरें तथा लुई ल, रोकोको शैली के वातो, बुशे , फ्रॉगनार का जिक्र किया. इसी तरह उन्होंने नव शास्त्रवाद के जौक दाविद, स्वछंदतावाद के टेवोडोर जेरिको, ओजेन डेलाकरा, फ्रांसिस गोया, अल्गरेको, यथार्थवाद के ओनोरे डोमिय, ग्यूस्ताव कुरबे, बर्बीजां कला के तेओडोर रूसो, कामीय कोरो की भी चर्चा की.

अपनी बात को विस्तार देते हुए ज्योतिष जोशी ने प्रभाववाद के एडवर्ड माने, क्लॉड मोने, अल्फ़्रेड सिसली, उत्तर प्रभाववाद के पॉल सेजान, वैन गॉग, प्रतीकवाद के मोरिस देनी, मोरो पॉल, फाववाद के हेनरी मातिस,घनवाद के पिकासो, अभिव्यंजनावाद के एडवर्ड मूँक, पॉल क्ली, अति यथार्थवाद के सल्वाडोर डाली, जेकोमिति, जॉन मिरो,दादावाद के मार्शल दयूंशा, फ्रांसिस पिकाबिया और अमूर्तवाद के केन्डिस्की, रेम्बरा आदि कलाकारों का जिक्र किया और इन कला आंदोलनों की सृजन पद्धतियों की बारीकियों को सूत्रों में समझाते हुए भारतीय कला के विभिन्न चरणों की चर्चा की. उन्होंने अपने वक्तव्य में बंगाल आंदोलन, प्रगतिशील कलाकार संघ, ग्रुप 1890, दिल्ली शिल्पी चक्र जैसे कला आंदोलनों के साथ जुड़े कलाकारों की चर्चा की. रवींद्रनाथ ठाकुर, गगनेन्द्र नाथ ठाकुर, अमृता शेरगिल, हुसैन, रज़ा, सूजा, गायतोंडे जैसे कलाकारों के अवदानों को रेखांकित करते हुए भारत में आधुनिकता और समकालीनता के प्रयोगों को भी देखा. इस दौरान अनेक प्रश्न उठे, जो यह जाहिर करने के लिए काफी थे कि लोगों में अपनी परम्परा और सृजन को लेकर काफी बेचैनी है.