प्रयागराजः महादेवी वर्मा का हिंदी भाषी राज्यों से कुछ खास ही नाता था. उत्तर प्रदेश का प्रयागराज तो उनकी कर्मभूमि था ही. इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने महादेवी वर्मा श्रम रोजगार योजना की घोषणा की है. राज्य के श्रम कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुनील भराला ने घोषणा की है कि राज्य सरकार महादेवी वर्मा सहित पांच महापुरुषों के नाम पर योजनाएं तैयार कर रही है, ताकि प्रदेश के सभी सवा करोड़ मजदूरों को अब उनके घर पर ही श्रम विभाग की योजनाओं का लाभ मिले. याद रहे कि आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए पास किया. कहते हैं कि उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए जब छात्रवृत्ति मिली, तब वह विदेश जाने को लेकर असमंजस में पड़ गईं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मार्गदर्शन लेने वह अहमदाबाद गईं और पूछा 'बापू मैं विदेश जाऊं या नहीं?' कुछ देर मौन धारण करने के बाद गांधीजी बोले 'अंग्रेजों से हमारी लड़ाई चल रही है और तू विदेश जाएगी? अपनी मातृभाषा के लिए काम करो और बहनों को शिक्षा दो.' यहीं से महादेवी वर्मा के जीवन की राह बदल गई. प्रयागराज में दैनिक जागरण के संवाददाता शरद द्विवेदी ने इस सिलसिले में महादेवी वर्मा के नजदीकी लोगों से बात की. महादेवी की मुंहबोली पौत्री आरती मालवीय ने कहा, 'दादी मां नारी समस्याओं को लेख के जरिए उभारकर उन्हें आत्मनिर्भर बनने को प्रेरित करती थीं. 'चांद' पत्रिका के संपादन काल में लेखों में निरंतर नारी समस्याओं, उनके उत्थान के बारे में लिखती रहीं. प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य के रूप में लड़कियों के पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम गृह विज्ञान का पाठ्यक्रम शामिल किया.'
प्रगतिशील लेखक संघ की संयोजक संध्या नवोदिता ने द्विवेदी को बताया कि महीयसी ने रसूलाबाद मोहल्ले में इलाचंद्र जोशी के सहयोग से 1955 में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की. महादेवी के 1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा तथा 1936 में साध्यगीत नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए. गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला इसके अतिरिक्त 18 काव्य, गद्य कृतिया हैं. मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियां व अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं. कवयित्री आभा मधुर ने कहा कि भारत में महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत का श्रेय महादेवी को जाता है. पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में कराया गया था. महादेवी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय महिला मंच की अध्यक्ष कवयित्री रचना सक्सेना ने उनके जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि स्वरूप नारायण वर्मा से महादेवी का बाल विवाह हुआ, लेकिन उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. अविवाहित की भांति जीवन व्यतीत किया. जीवनभर श्वेत वस्त्र धारण करके तख्त पर सोई.' फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को जन्मीं महादेवी की मां हेमरानी देवी और पिता गोविंद प्रसाद वर्मा थे. महादेवी ने जीवन का अधिकाश समय प्रयागराज में बिताया. यहीं, 11 सितंबर 1987 को अंतिम सांस ली. साहित्यकार गंगा प्रसाद पांडेय ने उन्हें महीयसी और सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने सरस्वती के नाम से पुकारा था. महादेवी को 1956 में पद्मभूषण, 1982 में ज्ञानपीठ, 1988 में पद्म विभूषण सम्मान प्राप्त हुआ.