पटना,  बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में गज़लगो मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' की  उनासवीं जन्मदिन के मौके पर उनकी गज़लों के संग्रह  'आईने के सामने' का लोकार्पण हुआ। वक्ताओं ने कहा "हिंदी ग़ज़लगोई में दुष्यंत के बाद यदि किसी कवि का नाम लिया जा सकता है तो वे हैं  मृत्युंजय मिश्र करुणेश। करुणेश ने अपनी शायरी से भी सिद्ध किया है कि हिंदी में भी उच्च स्तर की गज़लें लिखी जा सकती है। करुणेश की ग़ज़लों में हिंदी  की ऊर्जा शक्ति स्पष्ट दिखाई देती है।"  पुस्तक का लोकार्पण करते हुए ' बिहार गीत' के रचनाकार कवि सत्यनारायण ने कहा " करुणेश जी हिंदी के वरिष्ठ और विशिष्ट कवि हैं।हिंदी के ग़ज़लकारों में इनकी विशिष्ट पहचान है। ग़ज़ल एक अत्यंत नाज़ुक विधा है। ज़रा सी चूक से ग़ज़ल लहूलुहान हो सकती है।' अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने कहा "करुणेश की ग़ज़लों में प्रेम और सौंदर्य के साथ समाज की पीड़ा की भी अभिव्यक्ति होती है।

इसके पूर्व करुणेश जी को उनके जन्मदिवस पर सम्मानित किया गया।

पूर्व प्रशासनिक पदाधिकारी व साहित्यकार जियालाल आर्य ने अपने संबोधन में  कहा "करुणेश जी की गज़लें हृदय को तो छूती ही हैं इनकी प्रस्तुति भी प्रभावकारी होती है।इस मौके पर दया शिववंश पांडे, आर.पी घायल, प्रो बासुकीनाथ झा, कुमार अनुपम, दा उमाशंकर आर्य ऋषि, रमेश कँवल आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

मंच संचालन योगेंद्र प्रसाद मिश्र जबकि धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन  सिंह ने किया।