दैनिक जागरण का अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने के उपक्रम है हिंदी हैं हम। इसके अंतर्गत जागरण वार्तालाप में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक से उनकी नई पुस्तक द राइज आफ द बीजेपी पर चर्चा हुई। उल्लेखनीय है कि जागरण वार्तालाप में अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों से हिंदी में बातचीत की जाती है। 

प्रश्न- मंत्री बनने के पहले संगठन के काम में बहुत व्यस्त रहते थे, पुस्तक लिखने का समय कब मिला

 भूपेन्द्र – 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद इला जी से चर्चा हुई कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत को केंद्र में रखकर लिखा जाना चाहिए। मैंने कहा कि राजनीति पर मैं लिखता हूं अर्थशास्त्र पर आप लिखें। कोरोना महामारी के दौरान मिले समय का जमकर उपयोग किया।

प्रश्न- आपका बैकग्राउंड साम्यवादी है, जेएनयू में रहीं, भूपेन्द्र जी की पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की है। कोई समस्या नहीं हुई

 इला- 1988 में जेएनयू में एआईएसएफ के साथ थी। उसके बाद लेफ्ट से जुड़ाव नहीं रहा। हमारे परिवार में अलग अलग पालिटिक्ल व्यूज के लोग हैं । अपने माता पिता से मैंने यही सीखा कि जिसको जानना समझना है उसके नजदीक जाइए। जो मैंने जेएनयू और फैमिली से सीखा ये उसका ही परिणाम है।

प्रश्न–आप दोनों के बीच ऐसी चर्चा हुई कि भाजपा अर्थिक रूप से भारत को कैसे आगे ले जाएगी। एक अर्थशास्त्री होने के बावजूद आपकी रुचि एक पालिटिकल पार्टी में क्यों हुई

इला- जो भी इकोनामिक पालिसी के फैसले होते हैं वो पालिटिकल होते हैं। जिसको आप पालिटकल इकोनामी कहते हैं। कोई भी पार्टी जब पावर में आती है तो वो अपनी विचारधारा के आधार पर पालिसी लाती है। 2014 के मोदी जी के आने के बाद सरकार में बहुत एनर्जी आई। ऐसी नीतियां आने लगी जिससे लोगों का जीवन स्तर सुधरे। ये जनसंघ से लेकर भाजपा तक के दस्तावेजों में दिखता है। इस वजह से मेरी रुचि बनी ।

प्रश्न- ये माना जाता रहा है कि दो सिपाहियों की वजह से चंद्रशेखर की सरकार गिरी लेकिन आपने राम मंदिर को इसकी वजह माना है।

भूपेन्द्र- राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने चंद्रशेखर जी की जीवनी में लिखा है कि जैसे ही कांग्रेस को लगा कि चंद्रशेखर जी रामजन्म भूमि विषय को सुलझाने के करीब हैं तो उनकी सरकार गिरा दी। कांग्रेस ने समाधान के विषयों पर हमेशा लोगो को धोखा देने का काम किया।

प्रश्न- इला जी, डिमानिटाइजेशन को लेकर आपकी राय कैसे बदली, क्या पहले आपको समझने में भूल हुई थी ।

इला- मेरा डर ये था कि इससे जीडीपी ग्रोथ पर बहुत असर पडेगा, क्योंकि देश की 85 प्रतिशत करंसी चार घंटे में बंद हो रही थी। लोगों के पास ट्रांजेक्ट करने के लिए पैसे नहीं होंगे। लोगों को दिक्कतें हुईं। लेकिन सरकार इसको लेकर बहुत फ्लैक्सिबल थी। रोज रोज नियम बदले, उस वजह से कम असर पड़ा। किसी भी इकोनामिक पालिसी का जिस दिन एलान होता है, उस दिन के हिसाब से प्रतिक्रिया दी जाती है।

प्रश्न- क्या पुस्तक लिखते समय कभी आपको लगा कि बीजेपी का विस्तार व्यक्ति के करिश्मे की वजह से हुआ

भूपेन्द्र- जब पार्टी की स्थापना हुई तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की पर्सनैलिटी ने पार्टी को आगे बढाया। 1984 में दो सीटों से 1992 में देश के मुख्य विपक्षी दल बने। 1996 में सरकार बनाई। उसमें आडवाणी जी और अटल जी की पर्सनैलिटी का बड़ा योगदान था । 2004 की हार के बाद अटल जी स्वास्थ्य कारणों से निष्क्रिय हो गए थे। तब पार्टी ने अपना सांस्थानिक स्वरूप विकसित किया। 2014 के बाद के कालखंड में मोदी जी का बड़ा योगदान है । बीजेपी के विकास में निश्चित रूप से व्यक्ति के करिश्मे का योगदान है लेकिन पर्सनैलिटी ने पार्टी को बनाया।

प्रश्न- भाजपा और आरएसएस के संबंध आपको कैसे लगे

इला- किताब लिखने के दौरान कई ऐसे सवाल आए जहां मैंने ये समझने की कोशिश की कि भाजपा की क्या लाइन है और आरएसएस की क्या पोजीशन है। लोग कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस की एक ही पोजीशन होती है। हमने किताब में कई उदाहरण दिए हैं  जिसमें दोनों के विचार अलग हैं।

प्रश्न- एक नैरेटिव चलता है कि बीजेपी का उत्थान तुष्टीकरण और हिंदू वोट की एकजुटता की वजह से हुआ। आपलोगों ने इसको कैसे देखा है।

इला- हमारा किसी भी पालिसी को देखने का तरीका ये होता है कि उससे किसी कम्युनिटी को क्या फायदा और दूसरे का नुकसान क्या है। हमने उज्जवला योजना से लेकर पीएमआवास योजना, जनधन आदि का आकलन किया लेकिन कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखा। अगर कोई पार्टी किसी एक का फायदा या नुकसान करने की कोशिश करेगी तो वो नीतियों से निकल कर आएगा। ऐसा कुछ नहीं मिला।

प्रश्न- 1991 में आर्थिक सुधार का पूरा श्रेय नरसिंह राव को दिया है। क्या मनमोहन सिंह का कोई योगदान नहीं था।

भूपेन्द्र- उस समय नेतृत्व नरसिंह राव जी का था तो परिवर्तन हुआ वो उनकी वजह  हुआ। जब मनमोहन सिंह का नेतृत्व आया तो पालिसी पैरालिसिस हुई, उसपर लिखा।